एक कविता का सर्वोदयी स्वर ...
विनोद कुमार शुक्ल का कविता संग्रह 'सब कुछ होना बचा रहेगा' काफी दिन से बुक शेल्फ में रखा हुआ था। अचानक से कुछ न पढ़ी गई किताबें टटोलते हुए उसकी याद आ गई। गुंजेश भाई कई बार विनोद कुमार शुक्ल की कविता सुनाए हैं पहले। उन्हीं के बताने पर यह काव्य संग्रह भी लिए थे। अब हमारी इतनी हैसियत तो नहीं कि विनोद कुमार शुक्ल की किसी कविता की या उनके कविता संग्रह की समीक्षा करें। बस पढ़ते हुए एक कविता मन-मस्तिष्क में कहीं गहरे धंस गई। इसे तीन से चार बार पढ़ चुके हैं अब तक। मंगल ग्रह इस समय पृथ्वी के बहुत पास आ गया है' कविता जितनी बार पढ़ते हैं, हर बार गांधीवाद और उनका सर्वोदयी दर्शन बहुत बेसब्री से याद आ जाता है। इस कविता को पढ़ते हुए सबसे पहले धरती पर आसन्न जलवायु संकट पर दिमाग जाता है। यह धरती, जिसे अथर्व वेद में 'धरती माता' कहा गया है, को इसके ही बेटे-हम सब तहस-नहस करने को आमादा हैं। इंसान आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस तक पैदा कर लिया है लेकिन सवाल है कि यह सब किस काम का होगा जब धरती रहने लायक ही नहीं बचेगी ? अभी भारत जैसे देश का कोई भी मेट्रो और स्मार्ट सिटी पानी के मामले में बेपर है।