मनवा कहे आवारा बन जा...
कभी-कभी लगता है आवारा बन जाएं | मन करता है कि उठाएं एक छोटा बैग और निकल जाएं कहीं दूर बिना किसी उद्देश्य के| बस ट्रेन के पास वाली खिड़की मिल जाए और हरे भरे खेतों अपलक निहारते हुए चलते जाएं | किसी भी स्टेशन पर उतर जाएं फिर आगे का सफर किसी ट्रक के पीछे बैठ कर पूरा करें | किसी ढ़ाबे पर अपनी क्षुधा शान्त की जाए और तारों से भरे अनंत आकाश के नीचे सो जाएं, ठंडी ठंडी हवा के साथ सुबह की पहली किरण जगाए ओस से पूरी तरह भीग चुके हों | कितना अच्छा होता अगर यह ख्वाब पूरा हो पाता | सच में यह उसके लिए किसी ख्वाब से कम नहीं जो अपनी जिंदगी के पांच महत्वपूर्ण साल एक कमरे में बिता दिए हों वह भी किसी भीड़ भरे शहर में | किसी किसी दिन तो आखों के सामने बहुत गजब की रंगीन स्वप्निल संसार बन जाता है जिसमें दूर एक पहाड़ी गांव होता है, जिसके चारो तरफ होती हैं हरी भरी वादियां और पास बह रही होती हैं मध्दम मध्दम एक पहाड़ी नदी, कल की लयात्मक ध्वनि के साथ, सूरज जैसे दिन भर की थकान मिटानें नदी के किनारे चला आया हो | जैसे-जैसे वह नीचे आ रहा है पानी में उसकी परछाहीं बड़ी हो रही है, बहते पानी में जैसे सूरज पांव पखार रह