'आमनामा' में आम के खास चर्चे

साभार : गूगल 
वैज्ञानिकों के बीच मैंजीफेरा इंडिका के नाम से पहचाने जाने वाले आम की बात शुरू कहां से की जाए, यह तय करना थोड़ा मुश्किल है। बचपन के दिनों में तेज हवा चलने के समय या आंधी आने के बाद आम के पेड़ों के नीचे भागने की यादों से या बड़े होने पर आम से जुड़ी राजनीतिक, कूटनीतिक और साहित्यिक किस्से-कहानियों से। आम की चर्चा एक पुराण जितनी विस्तृत है। इन दिनों आम की एक चर्चा बीबीसी हिंदी के पूर्व ब्रॉडकास्टर परवेज आलम साहब ने 'सिने इंक' पर मेहर-ए-आलम साहब के साथ छेड़ रखी है। अब तक सात एपिसोड पूरे कर चुकी इस पॉडकास्ट सीरीज 'आमनामा' में आम के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा हो चुकी है। शायद आम ही एक मात्र ऐसा फल है जो भारत-पाकिस्तान ही नहीं, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में भी जिसपर भरपूर राजनीति होती है। अच्छे-बुरे कूटनीतिक संबंध तय होते हैं। 

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का अपने समकक्ष राष्ट्राध्यक्षों को आम खाना सिखाना हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इंटरव्यू में 'आम कैसे खाते हैं' सवाल पूछा जाना। कितना विस्तृत फलक है इस एक फल का। 

थोड़ा सा आम के साहित्यिक पक्ष पर आते हैं तो महाकवि कालिदास आम की बौरों को मदन बाण और फल को प्रेम की परिपक्वता का प्रतीक माना है। वहीं, संस्कृत के महाकवि माघ अपनी कृति ‘शिशुपालवधम्’ में लिखते हैं 

स्मरहुताशनमुर्मुरचूर्णतां दधुरिवाम्रवणस्य रज:कणा:।

निपतिता: परित: पथिकव्रजानुपरि ते परितेपुरतो भृशम्॥3॥

[मार्ग चारों ओर आम के बौरों के चूर्ण से पटे पड़े हैं। और वे विरही पथिकों की विरह-पीड़ा को जगाकर उन्हें संतप्त कर रहे हैं। आम्रमंजरी का पराग मानो कामाग्नि को उद्दीप्त करने का विशेष इंधन (मुर्मुरचूर्ण=आग जलाने की भूसी) हो।]

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर को आमों के मौसम में इंग्लैण्ड में समय बिताना पड़ा तो वह अपनी उम्र एक साल कम बताने लगे थे।अंग्रेजी उपन्यासकार ई. एम. फास्टर ने अपने चर्चित उपन्यास 'ए पैसेज टू इंडिया' में भारतीय स्त्रियों के स्तनों की तुलना आम से की हैं। शैव साहित्य में 'लिंग' को 'आम्रकेटश्वर' कहा गया है। 

ऐसे नायाब फल पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखा गया निबंध 'आम फिर बौरा गए' का जिक्र किए बिना चर्चा पूरी कैसे हो सकती है। इसमें वह आम और बिच्छू की तुलना करते हैं। उन्हें आम के बौर देखकर बिच्छू की याद आती है। यह एक बेहद कमाल का निबंध है। आम मशहूर शायर मिर्जा गालिब का आम प्रेम तो जगजाहिर है। 

सिने अंक पर चल रही आमनाम सीरीज अभी जारी है और इस बहाने आम पर बहुत लिखना मतलब ज्ञान का प्रदर्शन करने जैसा लगेगा। दरअसल, जो आनंद परवेज आलम साहब और मेहर-ए-आलम साहब की मीठी जबान में सुनने में है उसे कुछ शब्दों में लिखने में कहां। और हां, इस सीरीज के कुछ एपिसोड में अचला शर्मा जी ने धर्मवीर भारती की कविता कनु प्रिया का पाठ भी किया है। वह तो कमाल का है। इसके अलावा आम पर बहुत सारे गीत और शेर-ओ-शायरी भी सुनने को मिल रही है। 

इसी के साथ चचा अकबर इलाहाबादी का एक शेर और अपनी बात को विराम- 

असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर' 

इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक
पहुँचा। 

---------------------------------------------------

इस लिंक पर क्लिक करके आमनामा के सारे एपिसोड सुने जा सकते हैं - https://www.cineink.com/podcast/aamnaama/?fbclid=IwAR1BTQAbVs9mca_ZU1vl5QaG49RDPjx8b9DSKLWi0VExq8uYgjegEtCmBDA

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक नदी की सांस्कृतिक यात्रा और जीवन दर्शन का अमृत है 'सौंदर्य की नदी नर्मदा'

गड़रिये का जीवन : सरदार पूर्ण सिंह

तलवार का सिद्धांत (Doctrine of sword )

युद्धरत और धार्मिक जकड़े समाज में महिला की स्थित समझने का क्रैश कोर्स है ‘पेशेंस ऑफ स्टोन’

माचिस की तीलियां सिर्फ आग ही नहीं लगाती...

स्त्री का अपरिवर्तनशील चेहरा हुसैन की 'गज गामिनी'

ईको रूम है सोशल मीडिया, खत्म कर रहा लोकतांत्रिक सोच

महत्वाकांक्षाओं की तड़प और उसकी काव्यात्मक यात्रा

महात्मा गांधी का नेहरू को 1945 में लिखा गया पत्र और उसका जवाब

चाय की केतली