शब्द और वाक्यों पर क्यों रखें कॉपीराइट !

शब्द और वाक्य पर किसी का कॉपी राइट नहीं होना चाहिए। फेसबुक जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर तो एकदम नहीं। आखिर देवनागरी लिपि का आविष्कार 700-800 ईस्वी में हुआ था और हमारा इसके विकास में क्या योगदान है जो इस माध्ययम से व्यक्त की गई अपनी कुछ अभिव्यक्तियों पर विशेषाधिकार रखते हैं। अक्षरों का क्रम बदल देने से नया शब्द बन जाता है। माना यह एक रचनात्मक काम है लेकिन जो शब्द बन रहा उसमें भी तो हमारा कोई योगदान नहीं है। हमने कितने एकदम से नए शब्द गढ़े जो कि उस पर कॉपीराइट रखें। 
कॉमर्शिल तौर पर लिखें तो स्याही, कागज जैसा खर्च आता है किताब लिखने पर। इसके लिए कॉपीराइट कोई करे तो एक बार सोचा जा सकता है लेकिन फेसबुक स्टेटस के लिए ! हालांकि मैं किसी भी तरह के कॉपीराइट का समर्थन नहीं करता।
रही बात रचनात्मक विचार की तो ...कई बार दो लोग एकदम कॉपी एक जैसा सोच सकते हैं। जैसे 1869 में साइंस फिक्शन लेखक अमेरिका के एडवर्ड हाले ने 'द ब्रिक मून' में एक कृत्रिम उपग्रह की कल्पना की। जो करीब 100 साल बाद यथार्थ में बदली. एक दूसरा साइंस फिक्शन लिखा गया 1860 के आसपास. जिसमें चांद के बंजर होने की कल्पना थी, विशुद्ध कल्पना।  लेकिन 100 साल बाद जब अमेरिका ने चांद पर कदम रखा तो पूरी तरह से बात सच साबित हुई। ये होती है मानव मस्तिष्क की ताकत. दो लोगों के विचार भी इसी तरह मिल सकते हैं। किसी का लिखा बिना क्रेडिट दिए शेयर कर लिया जाए या नहीं ...यह सिर्फ नैतिकता का मामला है। 

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