क्यों फाड़ दिया मेरी किताब
मैने चाहा तुम्हे
जैसे थे तुम,
एकदम सपनो की तरह
डूबा तो सपनो की तरह
यादों में संजोया
तो सपनो की तरह
तुम्हे हकीकत माना
तो सपनो की ही तरह
पर भूल गया कि
सपने होते ही हैं क्षणिक,
नही था पता
इसकी सजा मिलेगी
जिंदगी माना मैने
खुली किताब जैसी
फड़फड़ाते रहे
हवा में इसके पन्ने
बहुतों ने पढ़ कर
छोड़ दिया इसे
एक तुम मिले
पहले नाम लिखा
लाल स्याही से
गोंजा इसपर मन भर
फिर भी मन न भरा
तो पन्ने फाड़ दिए
मेरी किताब के
नहीं संजोना तो
क्यों फाड़ा पन्नों को
बिखेर दिया
मेरे सपनों को
तुम क्या समझोगे
मुड़े तुड़े पन्नों का दर्द
सीधा करने पर भी
नहीं मिटती
उसके जिस्स से सलवटें
जोड़ने पर भी
पड़ जाते हैं निशां
नही समझोगे
उस टीस को
जो फटे पन्नो के
किताब को होती है
#यायावर
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