...और रावण फिर नहीं मरा
आज सुबह से पूरे गांव दशहरा मेले के रंग में रंगा हुआ है | बच्चे-बूढ़े सब इसबार सिर घुमाने वाले रावण को देेखने को बेताब हैं | अगर कोई इससे उदासीन है तो वह मुनमुन है | वह चुपचाप घर में सुबह से ही खुटुर पुटुर कर रही है | मां पूछती है, अरे मुनमुन !मेला नहीं जाना क्या ? जाओ देख आओ इसबार रवणवा सिर घुमाएगा...| मुनमुन ने कोई जवाब नहीं दिया और मां धीरे-धीरे बोलते हुए चली गई , यह भी अजीब लड़की है इसका न कहीं आने का मन करे न जाने का | भीड़ से इतनी नफरत इसे ...
इतने में भड़ाक से दरवाजा खुला और आवाज आई, मुनमुन चलो मेला देखने | यह मुनमुन की सबसे खास दोस्त थी रिंपा | मुनमुन ने मुह बनाते हुए कहा मै नहीं जाऊंगी तुम्हें जाना हो तो जाओ | पता नहीं कौन मरेगा इस भीड़ में | एक रावण देखने के लिए पता नही कितने रावण आएंगे...
वह इतना कहकर शांत हुई ही थी कि रिंपा ने कहा अरे यार आज चल चलो फिर पता नहीं मौका मिलेगा या नहीं अगले साल शादी होने वाली है मेरी ...
इतना कहकर वह नजरें नीची कर ली और थोड़ा मायूस सी हो गई | यह देख मुनमुन ने लंबी सांसें लेते हुए कहा ऐसी बात है तो चलो फिर ... पर पैसा कितना मिला है ? उसने आंख मटकाते हुए कहा | रिंपा ने कहा अरे पूरे 500 रूपए , तुम चलो तो सही |
इतना कहकर वह नजरें नीची कर ली और थोड़ा मायूस सी हो गई | यह देख मुनमुन ने लंबी सांसें लेते हुए कहा ऐसी बात है तो चलो फिर ... पर पैसा कितना मिला है ? उसने आंख मटकाते हुए कहा | रिंपा ने कहा अरे पूरे 500 रूपए , तुम चलो तो सही |
क्या पहने क्या नहीं, इस बात पर थोड़ी देर माथापच्ची के बाद मुनमुन तैयार हो गयी | आज उसने हरे रंग का सलवार और नारंगी रंग का सूट पहन रखा है, उसपर किनारी पर हरे रंग का गोट लगा है | वह सांवली है पर तीखे नैन नख्स के नाते वह ख़ूबसूरत लगती है | आज तो यह कपड़े उसपर और भी फब रहे है |
तैयार होने के बाद वह अपने आप को शीशे में निहार कर कहीं खो सी गयी | रिंपा उसे हिलाकर बोली क्या हुआ चलो जल्दी ...
मुनमुन ने एक बार फिर कहा, मुझे मत ले जाओ यार ... छोड़ो मै नहीं जाती ! इतना सुनकर रिम्पा ने शरारती अंदाज में कहा, क्यों वहां कोई तुम्हे पकड़ लेगा क्या जो इतना डरती है |
मुनमुन ने कहा नहीं .... छोड़ यार ये सब बातें ....| दरअसल उसके जेहन में भीड़ ने कुछ ऐसी बुरी यादों का ठप्पा लगा दिया है जिसे याद कर वह भीड़ से नफरत करने लगती हैं | उसे याद है वह दिन जब वह 13 साल की थी, एक दिन बस की भीड़ में किसी लिजलिजे हाथ का स्पर्श हुआ था | दूसरी बार जब वह 15 की हो गयी थी तो एक अधेड़ अंकल ने बाजार की भीड़ में हाथ पकड़ा, वह व्यक्ति रहा होगा मुनमुन के पापा के उम्र का लेकिन उसके हाथ पकड़ने में अंतर लगा | इस उम्र में वह भलीभांति समझने लगी थी इस बात को | और भी न जाने कितनी बार वह रोज ऐसी निगाहों का सामना रोज करती थी जो उसके कपड़े के उपर से एक्सरे करती मालूम पड़ती।
दोनों मेले में घूमते घूमते अंतत: उस जगह पर पहुच गयीं जहाँ आज रावण जलाया जाने वाला था| भीड़ बढ़ती जा रही थी, जिस्म से जिस्म ऐसे रगड़ रहा था जैसे छिल ही जाएगा, जो एक बार हाथ ऊपर कर ले उसे नीचे करने में भी मशक्कत करनी पड़ रही थी | लोग बेसब्र हो रहे थे रावण को जलता देखने को, | इतने में माइक में घोषणा हुई कि बस आग लगने ही वाली है रावण को, देखने के लिए सब तैयार हो जाएँ |
आग लगा दी गई नीचे की तरफ से, वह जैसे जैसे ऊपर की तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे तालियों और पटाखों का शोर भी बढता जा रहा था| इसी बीच मुनमुन को उसके उरोजों पर किसी हाथ का स्पर्श महसूस हुआ
| वह एक झटके में उसे हटा कर गुस्से से चीखी, फिर आस पास देखा तो लोग मुस्करा रहे थे | जहां अब तक रावण सामने मुह कर के खड़ा था, वह भी मुह फेर चुका था | उससे फूटने वाले पटाखे जैसे अट्टहास कर रहे हों...
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