जिन्होने समाजवादी गणतंत्र का स्वप्न देखा
तीन मार्च 1931 को भगत सिंह ने जेल विभाग के दो बदामी कागज के टुकड़ों पर जो स्पष्टतया उन्हें किसी बार्डर की सहानुभूति से मिले थे पंजाब के गर्वनर को एक चुनौती पूर्ण संदेश लिखा और उसे उसे उन्होने चोरी से बाहर भेजा।
सेवा में
गर्वनर
पंजाब
महोदय
यथोचित
सम्मान के साथ हम निम्नांकित तथ्य आपके सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं ।
कि
भारत में ब्रिटिस सरकार के प्रधान वाइसराय महोदय द्वारा लागू किए स्पेशल एस.सी.सी.
के अन्र्तगत निर्मित विशेष अदालत द्वारा 7 अक्टूबर 1930 को हम पर दोष लगाया गया था
कि हमने इंग्लैंड के शासक महाराज जार्ज के विरुद्ध युध्द का संचालन किया है।
न्यायालय की उक्त तजबीजों में दो चीजें पहले ही मान ली गई हैं:
प्रथम तो यह कि भारत तथा इग्लैंड के बीच युध्द की स्थिति है और
दूसरा यह कि हमने वस्तुतः युध्द में भाग लिया है और इसलिए हम युध्द बंदी के रूप
में हैं । दूसरी पूर्व मान्यता से थोड़ी सी मिथ्या प्रशंसा सी ज्ञात होती है किन्तु
फिर भी उससे सहमत होने की आकांक्षा प्रतिरोध करने को जी नहीं चाहता ।
युध्द की स्थिति
जहां तक युध्द का प्रश्न है हमें
उसके बारे में कुछ विस्तार से जानने की
आवश्यकता है। प्रत्यक्ष रूप से तो यहां किसी प्रकार का युध्द नहीं है किन्तु फिर
भी यदि हम मान लें कि युध्द की स्थिति है तो ठीक समझे जाने के लिए हमें इसे और
स्पष्ट करना चाहिए। हम घोषित करें कि यहां युध्द की स्थिति विद्यमान है और तब तब
विद्यमान रहेगी जब तक भारत के पसीना बहाने वाले जनसमूह तथा उसके प्राकृतिक वैभव का
मुट्ठी भर शोषकों द्वारा शोषण होता रहेगा। हो सकता है वे शोषक विशुध्द अंग्रेज
पूंजीपति हों अथवा भारतीय तथा अंग्रेज दोनों मिले-जुले हों, अथवा
विशुध्द भारतीय ही हों। हो सकता है कि वे अपने कपट पूर्ण शोषण का संचालन मिल-जुलकर
करें अथवा उसका संचालन विशुध्द भारतीय नौकरशाही के माध्यम से किया जाए। इससे मूल
तथ्य में कोई अंतर नहीं पड़ता। इसकी हमें कोई चिंता नहीं कि आपकी सरकार प्रयत्न
करे और उसे छोटी-मोटी सुविधाओं तथा समझौतों द्वारा भारतीय समाज के उच्चवर्ग के
नेताओें को मिला लेने में सफलता मिल भी जाय और इस प्रकार सेना के मुख्य गठन में
अस्थाई मनोबल की कमी भी आ जाए। हमे इसकी कोई चिंता नहीं कि एक बार पुनः भारतीय
आन्दोलन के अगुआ ‘क्रांतिकारी दल‘ अपने
को घने युध्द के बीच छुटा हुआ पाए। हमें इसकी परवाह नहीं कि वे नेता जिनके हम सहानुभूति
तथा भावना के लिए व्यक्तिगत रूप से ऋणी हैं जो
उन्होने हमारे लिए व्यक्त की, अन्यथा बातें करने लगे हैं। किन्तु फिर भी
हम उस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते वे नेतागण इतने कठोर हृदय हो जाएं कि शान्ति
वार्ता में गृह विहीन, मित्र विहीन तथा निर्धन महिला
कार्यकत्रियों की जिन पर सेना के अगुआ लोगों से संबन्धित होने के आरोप लगाए गए हैं
तथा जिन्हें नेतागण अपने अहिंसात्मक आंदोलनों का जो पहले ही अतीत का हिस्सा बन चुका
है शत्रु समझते है, अवहेलना
की जाए। हम उन वीरांगनाओं की उपेक्षा होते हुए भी नहीं देख सकते जिन्होने
प्रसन्नता के साथ अपने पतियों भाइयों
तथा अपने साथ अपने सर्वस्व का जो उन्हें प्रियतम था बलिदान
कर दिया है तथा जिन्हे तुम्हारी सरकार ने बागी घोषित कर दिया है। हम इसकी भी परवाह
नही करते कि तुम्हारे दलाल इतने नीचे स्तर पर उतर आते है कि वे उने निर्मल चरित्र
पर उनकी तथा उनके दल की प्रतिष्ठा को ठेस पहुचाने के लिए मनगढ़न्त आधाररहित कलंक लगाते हैं। ऐसी
स्थिति में भी हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
चुनाव आपके हाथ में
विभिन्न अवसरों पर संघर्ष का स्वरूप विभिन्न हो सकता है कभी
यह प्रकट और कभी गुप्त हो सकता है कभी
यह विशुध्द आंदोलन का तो कभी जीवन तथा मृत्यु के भीषण संघर्ष का रूले सकता है। इस
बात का चुनाव कि यह संघर्ष रक्त रंजित हो अथवा तूलनात्मक ढ़ंग से शान्तिमय हो यह
आपके हाथ में है। जिस मार्ग को आप चाहें चुन लें।
किन्तु यह युध्द निरंतर चलता रहेगा। और हम उन अर्थ विहीन कोरे आदर्शों तथा
छोटी मोटी बातों का विचार ना करेंगे।
यह युध्द निरन्तर नई शक्ति निर्दिष्ट उत्साह तथा अदम्य दृढ़ता से
चलता रहेगा जब तक कि सामाजिक परिवर्तन नहीं हो जाता है और वर्तमान सामाजिक
व्यवस्था का स्थान सार्वजनिक व्यवस्था पर आधारित नई सामाजिक व्यवस्था नहीं ले
लेती। इस प्रकार प्रत्येक प्रकार के शोषण का अन्त होने के उपरान्त आवश्यक तथा स्थाई शान्ति के युग में
मानवता का अभ्युदय नहीं हो जाता तब तक निकट भविष्य में ही अन्तिम निर्णायक युध्द
लड़ा जाएगा और अन्तिम प्राप्त होंगे।
पूंजीवादी तथा साम्राज्यवादी शोषण के दिन अब गिने चुने हैं। युध्द न तो हमारे साथ आरम्भ
हुआ है और न उसका अन्त हमारे जीवन के साथ होने जा रहा है। यह ऐतिहासिक घटनाओं और
वर्तमान वातावरण अवश्यम्भावी परिणाम है। हमारे तुच्छ बलिदान उस श्रृंखला की कड़ी
मात्र होंगे जिसका सौंदर्य अतुलनीय बलिदान कामरेड
भगवतीचरण अत्यन्त दारूणिक किन्तु बहुत ही शानदार आत्म त्याग और हमारे प्रिय योद्धा
आजाद की मृत्यु से निखर उठा है।
प्रेरक आवाज
जहां तक मेरे भाग्य का सवाल है मैं यह कहने की आज्ञा चाहता हूं
कि जब तुमने हमें मौत के घाट उतारने का निश्चय कर ही लिया है तुम
निश्चय ही ऐसा करोगे, तुम्हारे हाथ में शक्ति है और संसार में
शक्ति ही सबसे बड़ा औचित्य है। हम जानते हैं कि ‘जिसकी
लाठी उसकी भैंस वाली कहावत ही तुम्हारा मार्ग निर्देशन
करती है। हमारा पूरा अभियोग उसका पूरा प्रमाण है। यहां हम यह कहना चाहते हैं कि
तुम्हारे न्यायालय के कथनानुसार हमने एक युद्ध का संचालन किया और इसलिए हम युद्ध
के बंदी हैं और हम कहते हैं कि हमारे साथ वैसा ही व्यवहार हो अर्थात हम कहते हैं
कि हमे फांसी पर चढ़ाने के स्थान पर हमें गोली मार दी जाए। यह सिद्ध करना तुम्हारा
काम है कि वास्तव में तुम्हारा अर्थ वही है जो तुम्हारे न्यायालय ने कहा है। हम
प्रार्थना करते हैं और आशा है कि आप कृपया अपने
सैनिक विभाग को हमारे वध को पूर्ण करने के लिए अपनी टुकड़ी भेजने की आज्ञा
देंगे।
आपका
भगत सिंह
साभार पुुस्तक अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद से राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली
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