एकरंगी होती दुनिया


आज मैं सुबह से मेरे दिमाग में एक बात तनकर खड़ी हो गई है। कतई वह खिसकने का नाम नहीं ले रही है। बात है एकरसता की, विविधता की। यह दुनिया जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, कितना एकरस होती जा रही है। चाहे वह भाषा हो या खान-पान। जीवों जेनेटिक विविधता हो या फलों और सब्जियों की। सारे शहर एक जैसे ही लगते हैं। एक जैसी बनावट, लगभग एक ही जैसा कल्चर। खाने के मामले में तो पूछना ही नहीं है। चाइनीज पंजाबी और साउथ इंडियन का इस तरह प्रभुत्व है कि स्थानीय स्तर की सारी चीजें गायब। जब मैं किसी शहर की सड़क पर टहलता हूं तो बड़ी बोरियत सी लगती है। पिछले वाले शहर वाले मैक्डोनॉल्ड और सीसीडी से यहां भी सामना हो जाता है। विविधता किसी भी शहर के पुराने हिस्से में तो बची है लेकिन जो नया हिस्सा है वहां बिल्कुल नहीं है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नई संस्कृति किस तरह विविधता को लील जाने पर आमादा है।

भाषायी और जैव विविधता को थोड़ा सा आंकड़ों में देखें तो स्थिति ज्यादा साफ दिखती है। 1903 से लेकर अब तक सब्जियों की 93 फीसदी से अधिक प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं। 1903 में सिर्फ कद्दू की 285 प्रजातियां दुनिा भर में उगती थीं। इनकी संख्या अब महज 16 बची है। इसी तरह टमाटर की 408 तो ककड़ी और टमाटर की 400-400 प्रजातियां हुआ करती थीं। जो क्रमश: 79, 28 और 25 प्रकार की ही बची हैं।
इसी तरह भाषा की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार सदी के अंत तक 7000 भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी। जबकि कुल भाषाएं ही लगभग 7111 हैं। हर 14 दिन में एक भाषा विलुप्त हो रही है।

अभी देश में नई बहस शुरू हो रही है फिर से गैर हिंदी भाषी राज्य में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी अनिवार्य करने को लेकर। सरकार ने नई शिक्षा नीति में इसे रखा है। हिंदी लगभग पूरे देश में कम या ज्यादा बोली जाती है। लेकिन बाकी भाषाओं के साथ ऐसा नहीं है। हमें लगता है कि हिंदी अनिवार्य बनाकर इस एकरस होती दुनिया और देश को और अधिक नीरस कर दिया जाएगा। हम समझते हैं कि हिंदी भाषी राज्यों में देश की कोई अन्य भाषा सिखाई जानी चाहिए। वह संस्कृत न हो। बल्कि पूर्वोत्तर की कोई हो सकती है या दक्षिण भारत की, गुजराती, पंजाबी कुछ भी।
हिंदी भाषी क्षेत्र में गैर हिंदी भाषियों को काफी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले से पहली बार जब भाषण दिया था तो उन्होंने कृपा की बजाए क्रुपा बोला था। जिसको लेकर सोशल मीडिया पर काफी मजाक उड़ा था। हमने भी उड़ाया था। लेकिन गुजरात जाने के बाद यह मालूम हुआ कि गुजराती में क्रुपा ही बोला जाता है। कितनी अजीब बात है कि हम हिंदी भाषी इसी देश की कोई और भाषा नहीं जानते। जबकि गैर हिंदी भाषी से सरकार अपेक्षा करती है कि वह सीखे। वह भी तब जब ज्यादातर गैर हिंदी भाषी हिंदी काम चलाऊ ही सही, समझते हैं।

एकरसता यहीं तक नहीं है। सोचने-विचारने में भी एकसारता सी दिखती है। जितने अलग-अलग विचार कुछ सदी पहले दुनिया में अस्तित्व में थे, शायद अब उतने नहीं हैं। ऐसा मेरा विचार है। विचार विमर्श के माध्यम तो बढ़े लेकिन विमर्श का धैर्य इंसान खोते जा रहा है। नए गाने और फिल्मों में भी बहुत कम विविधता दिखती है। न सिर्फ कंटेंट के लेवल पर बल्कि उसके कलात्मक पक्ष के हिसाब से भी। अभी जो पिछले चार पांच साल में आए हैं उसको सुनकर आप धुन बनाने वाले और गाने वालो के बीच अंतर नहीं कर सकते। कुछ नया नहीं मिलता है। कुछ ठहरे से शब्द हैं, जिन्हें घुमा-फिराकर इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग अच्छा प्रयोग कर रहे हैं लेकिन वह भी धुन और गाने की स्टाइल के हिसाब से एक जैसे ही लगते हैं।


इस एकरसता पर ही बात याद आ गई। गुंजेश भाई के साथ बात करते हुए, एक प्वाइंट निकलकर सामने आया था। उन्होंने कहा कि हवाई जहाज ने दुनिया को सिकोड़ दिया। जबकि पानी वाले जहाजों ने इस दुनिया का विस्तार किया था। पानी के जहाज से यात्राएं महीनों लंबी हुआ करती थीं। वो रास्ते में किसी बंदरगाह पर कई कई दिन तक रुका करते थे। कुछ लोग तो मंजिल पर पहुंचने की बजाए बीच में ही उतरने का फैसला कर लेते थे। इस दौरान लोग स्थानीय लोगों के साथ घुलते-मिलते थे। सामान के साथ अपनी संस्कृति का आदान-प्रदान अनायास ही कर लेते थे। अब अरब और पश्चिम वालों को ही ले लिया जाए। पश्चिम वालों ने पानी के जहाज से ही मसालों का कारोबार करते हुए जहां जहां रुके वहां वहां अपनी संस्कृति के फुटप्रिंट छोड़े। हवाई जहाज में इसके उलट है। व्यक्ति एक जगह से सवार हुआ और दूसरी जगह उतर गया। यह सब बस कुछ घंटों का होता है। इस पर कभी कुछ लंबा पढ़ने का मन है। यह तो बस एक विचार बिंदु था।


टिप्पणियाँ

  1. ब्लॉग निस्संदेह थोड़ा और विस्तृत हो सकता था।प्रासंगिक और सामयिक है।धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया। निश्चित तौर पर विस्तृत हो सकता था। लेकिन नहीं हो पाया उस समय।

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    2. I stumbled upon your blog and it's so serenditpitous. your language is so graceful and beautiful.

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