मानव विकास क्रम में स्त्रियों ने चुकाई बड़ी कीमत, इंसान का धरती पर उद्भव अनर्गल घटना
मानव विकास के क्रम में पुरुषों और महिलाओं ने क्या खोया-क्या पाया यह जानना बेहद दिलचस्प है। युवाल नोह हरारी की किताब 'सेपियंस: ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड' पढ़ते हुए पता चला कि पुरुष जब खड़े होकर चलने लगा तो वह सवाना के घास के मैदान में अपने अन्य साथियों पर भारी पड़ने लगा। वह आसानी से दूर तक और घास के झुरमुटों के भीतर देखने में सक्षम हो गया। उसके लिए शिकार आसान हो गया, दोनों हाथ फ्री हो गए। इस विकास का खामियाजा महिलाओं ने चुकाया। उनके कूल्हों को प्रकृति ने पतला कर दिया संतुलन ठीक रखने के लिए। नतीजा यह हुआ कि उनमें बच्चों को जन्म देने का मार्ग संकरा हो गया। जिसकी वजह से पहली चीज कि बच्चों को जन्म देते पहले से अधिक पीड़ा का सामना करना पड़ने लग गया। दूसरा, कई मिलेनिया साल तक लाख से अधिक बच्चों की मौतें हुई्, न जाने कितनी मांओं की जान गई। अंतत: प्रकृति ने इसमें भी बदलाव किया और प्री मेच्योर बच्चों को जन्म देने का सिलसिला शुरू हुआ।
अब इसका खामियाजा यह हुआ कि स्त्रियों का सारा समय बच्चों की देखभाल में ही गुजरने लगा। वरना इसके पहले दूसरे जीव जैसे एप, बंदर या चिंपैंजी जैसे ही मानव के बच्चे भी जल्दी ही अपने पैरों पर चलने-फिरने लगते थे। क्रमिक विकास की वजह से एक समस्या और आई, पहले सिर थोड़े लंबे और छोटे हुआ करते थे। लेकिन विकास क्रम में इंसान का सिर गोल और बड़ा होता गया। इन सब चीजों ने मिलकर स्त्री का जीवन पूरी तरह दर्द और बंधनयुक्त बना दिया। वह मां बनने के बाद सालों तक सामाजिक रूप से कट सी गई।
मानव जाति का इतिहास पढ़ते हुए अपनी उत्पत्ति और वर्तमान क्षमताओं को टटोलना भी कम मजेदार नहीं है। हरारी लिखते हैं कि करीब सत्तर हजार साल पहले इस धरती पर लगभग छह मानव जातियां हुआ करती थीं। फिर अफ्रीका में उद्भव हुआ होमो सेपियंस का। नियंडरथल इसका प्रतिद्वंदी था। नियंडरथल में भगवान जैसी चीज की कल्पना करने और बड़े संगठन बनाने की क्षमता नहीं थी। नतीजा हुआ कि सेपियंस ने समूह बनाकर शारीरिक रूप से अजानबाहु नियंडरथल का बड़े पैमाने पर सफाया कर दिया। हरारी बहुत उदासी के साथ अपने इस आग्रह पर बार बार लौटते हुए दिखाई पड़ते हैं कि इस ब्रह्मांड में मनुष्य का अस्तित्व में आना ही बेहद खतरनाक घटना थी। ऐसा होना ही नहीं चाहिए था। हरारी लिखते हैं कि मनुष्य का प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर पहुंचना उसके अस्तित्व के लिए भले ही अमरता जैसा हो लेकिन यह धरती और दूसरे जीवों के लिए कतई अच्छा नहीं रहा। हालांकि वे यह भी बताते हैं कि मनुष्य इस खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर पहुंचा कैसे ? सेपियंस के पास न तो ऐसे हथियार थे कि जानवरों की आसानी से हत्या कर सकें और न ही उनके जैसी ताकत। दरअसल यह सब मनुष्य ने अपनी कॉग्नेटिव क्षमताओं के जरिए हासिल किया है। मनुष्य ने विश्लेषण, पर्यवेक्षण, मननशीलता, भाषा और संवाद के ज़रिये अपने निकटस्थ पर्यावास पर विजय पाई। यहां तक कि हरारी के अनुसार, मनुष्य में काल्पनिक चीज़ों में भरोसा करने की अद्भुत क्षमता है — जैसे ईश्वर, राष्ट्र, वित्त-व्यवस्था, मानवाधिकार — जिनका कि वस्तुत: कोई अस्तित्व ही नहीं है। नतीजतन उसने धर्म, क्षेत्र, राजनीति, अर्थव्यवस्था, क़ानून जैसी परिघटनाएं रची हैं, जो उसके स्तर पर “हाइपोथेटिकली” चाहे जितनी तार्किक हों, वस्तुगत रूप से जिनका इस सृष्टि के व्याकरण में कोई भी स्थान नहीं है। यानी मनुष्यता की समूची बुनियाद निहायत अमूर्त धारणाओं पर टिकी हुई है, जिन्हें कभी भी डिगाया जा सकता है।
अभी तक हमने इतिहास के नाम पर राजा-महाराजाओं के खड्यंत्रों, रंक्तरंजित युद्धों की कहानियां पढ़ी थी। चीन से लेकर अरब और रोम तक पूरा इतिहास इसी तरह की कहानियों से भरा है। लेकिन यह किताब मनुष्यता का इतिहास है। एक स्थूल जीव से लेकर शातिर दिमाग तक पहुंचने वाले जीव की यात्रा का इतिहास। कुछ मानव उत्पत्ति के बारे में तो पढ़ा ही गया था लेकिन यहां हरारी कुछ नई स्थापनाएं, सोचने के नए नजरिए भी रखते हैं। हरारी का यह भी मानना है कि 12000 साल पहले होने वाली जिस घटना को हम कृषि क्रांति के नाम से जानते हैं दरअसल वह एक फ्राड है। उसने इस धरती और मनुष्य दोनों का सबसे अधिक नुकसान किया। कृषि क्रांति से पहले मनुष्य में कुपोषण की समस्या नहीं देखने को मिलती। वे कृषि क्रांति और और गेहूं की यात्रा को जिस खूबसूरती से बयां करते हें, उसका तो पूछना ही क्या? हरारी लिखते हैं कि 10000 हजार ईसा पूर्व हुई कृषि क्रांति को गेहूं के व्यू प्वाइंट से देखें तो उस वक्त यह सिर्फ एक जंगली घास हुआ करता था। मध्यपूर्व के कुछ ही हिस्सों में यह पाया जाता था। जेनेटिक साक्ष्यों के अनुसार यह पहली बार यह दक्षिण पूर्वी तुर्की में उगा। गेहूं की खेती का पहला साक्ष्य दक्षिणी लेवेंट में मिलता है करीब 9600 ईसा पूर्व। कुछ ही हजार साल बाद यह पूरी दुनिया में फैल गया। क्रमिक विकास के बुनियादी मानदंडों के अनुसार अस्तित्व और वृद्धि की दृष्टि से धरती के इतिहास का सबसे कामयाब पौधा है। उत्तरी अमेरिका के मैदानों में जहां दस हजार साल पहले गेहूं का एक डंठल तक नहीं होता था, आज सैकड़ों मील तक यही दिखता है। धरती पर इस वक्त लगभग 870000 वर्ग मील क्षेत्रफल में गेहूं की खेती होती है। यह क्षेत्रफल ब्रिटेन से दस गुना अधिक है। हालांकि यह सब किताब के सिर्फ पहले और दूसरे चेप्टर में मिलेगा। आगे के चेप्टरों में उन्होंने खुशी जैसे विषयर भी अपने विचार रखे हैं, जो कि बहुत सब्जेक्टिव है।
अब इसका खामियाजा यह हुआ कि स्त्रियों का सारा समय बच्चों की देखभाल में ही गुजरने लगा। वरना इसके पहले दूसरे जीव जैसे एप, बंदर या चिंपैंजी जैसे ही मानव के बच्चे भी जल्दी ही अपने पैरों पर चलने-फिरने लगते थे। क्रमिक विकास की वजह से एक समस्या और आई, पहले सिर थोड़े लंबे और छोटे हुआ करते थे। लेकिन विकास क्रम में इंसान का सिर गोल और बड़ा होता गया। इन सब चीजों ने मिलकर स्त्री का जीवन पूरी तरह दर्द और बंधनयुक्त बना दिया। वह मां बनने के बाद सालों तक सामाजिक रूप से कट सी गई।
मानव जाति का इतिहास पढ़ते हुए अपनी उत्पत्ति और वर्तमान क्षमताओं को टटोलना भी कम मजेदार नहीं है। हरारी लिखते हैं कि करीब सत्तर हजार साल पहले इस धरती पर लगभग छह मानव जातियां हुआ करती थीं। फिर अफ्रीका में उद्भव हुआ होमो सेपियंस का। नियंडरथल इसका प्रतिद्वंदी था। नियंडरथल में भगवान जैसी चीज की कल्पना करने और बड़े संगठन बनाने की क्षमता नहीं थी। नतीजा हुआ कि सेपियंस ने समूह बनाकर शारीरिक रूप से अजानबाहु नियंडरथल का बड़े पैमाने पर सफाया कर दिया। हरारी बहुत उदासी के साथ अपने इस आग्रह पर बार बार लौटते हुए दिखाई पड़ते हैं कि इस ब्रह्मांड में मनुष्य का अस्तित्व में आना ही बेहद खतरनाक घटना थी। ऐसा होना ही नहीं चाहिए था। हरारी लिखते हैं कि मनुष्य का प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर पहुंचना उसके अस्तित्व के लिए भले ही अमरता जैसा हो लेकिन यह धरती और दूसरे जीवों के लिए कतई अच्छा नहीं रहा। हालांकि वे यह भी बताते हैं कि मनुष्य इस खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर पहुंचा कैसे ? सेपियंस के पास न तो ऐसे हथियार थे कि जानवरों की आसानी से हत्या कर सकें और न ही उनके जैसी ताकत। दरअसल यह सब मनुष्य ने अपनी कॉग्नेटिव क्षमताओं के जरिए हासिल किया है। मनुष्य ने विश्लेषण, पर्यवेक्षण, मननशीलता, भाषा और संवाद के ज़रिये अपने निकटस्थ पर्यावास पर विजय पाई। यहां तक कि हरारी के अनुसार, मनुष्य में काल्पनिक चीज़ों में भरोसा करने की अद्भुत क्षमता है — जैसे ईश्वर, राष्ट्र, वित्त-व्यवस्था, मानवाधिकार — जिनका कि वस्तुत: कोई अस्तित्व ही नहीं है। नतीजतन उसने धर्म, क्षेत्र, राजनीति, अर्थव्यवस्था, क़ानून जैसी परिघटनाएं रची हैं, जो उसके स्तर पर “हाइपोथेटिकली” चाहे जितनी तार्किक हों, वस्तुगत रूप से जिनका इस सृष्टि के व्याकरण में कोई भी स्थान नहीं है। यानी मनुष्यता की समूची बुनियाद निहायत अमूर्त धारणाओं पर टिकी हुई है, जिन्हें कभी भी डिगाया जा सकता है।
अभी तक हमने इतिहास के नाम पर राजा-महाराजाओं के खड्यंत्रों, रंक्तरंजित युद्धों की कहानियां पढ़ी थी। चीन से लेकर अरब और रोम तक पूरा इतिहास इसी तरह की कहानियों से भरा है। लेकिन यह किताब मनुष्यता का इतिहास है। एक स्थूल जीव से लेकर शातिर दिमाग तक पहुंचने वाले जीव की यात्रा का इतिहास। कुछ मानव उत्पत्ति के बारे में तो पढ़ा ही गया था लेकिन यहां हरारी कुछ नई स्थापनाएं, सोचने के नए नजरिए भी रखते हैं। हरारी का यह भी मानना है कि 12000 साल पहले होने वाली जिस घटना को हम कृषि क्रांति के नाम से जानते हैं दरअसल वह एक फ्राड है। उसने इस धरती और मनुष्य दोनों का सबसे अधिक नुकसान किया। कृषि क्रांति से पहले मनुष्य में कुपोषण की समस्या नहीं देखने को मिलती। वे कृषि क्रांति और और गेहूं की यात्रा को जिस खूबसूरती से बयां करते हें, उसका तो पूछना ही क्या? हरारी लिखते हैं कि 10000 हजार ईसा पूर्व हुई कृषि क्रांति को गेहूं के व्यू प्वाइंट से देखें तो उस वक्त यह सिर्फ एक जंगली घास हुआ करता था। मध्यपूर्व के कुछ ही हिस्सों में यह पाया जाता था। जेनेटिक साक्ष्यों के अनुसार यह पहली बार यह दक्षिण पूर्वी तुर्की में उगा। गेहूं की खेती का पहला साक्ष्य दक्षिणी लेवेंट में मिलता है करीब 9600 ईसा पूर्व। कुछ ही हजार साल बाद यह पूरी दुनिया में फैल गया। क्रमिक विकास के बुनियादी मानदंडों के अनुसार अस्तित्व और वृद्धि की दृष्टि से धरती के इतिहास का सबसे कामयाब पौधा है। उत्तरी अमेरिका के मैदानों में जहां दस हजार साल पहले गेहूं का एक डंठल तक नहीं होता था, आज सैकड़ों मील तक यही दिखता है। धरती पर इस वक्त लगभग 870000 वर्ग मील क्षेत्रफल में गेहूं की खेती होती है। यह क्षेत्रफल ब्रिटेन से दस गुना अधिक है। हालांकि यह सब किताब के सिर्फ पहले और दूसरे चेप्टर में मिलेगा। आगे के चेप्टरों में उन्होंने खुशी जैसे विषयर भी अपने विचार रखे हैं, जो कि बहुत सब्जेक्टिव है।
Bahut sundar aur achhi jankari ... well written Praveen singh
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