अपने - अपने राम

राम के बारे में जब हम सोचते हैं तो कई तरह के राम मिलते हैं| हर राम एक दूसरे से एकदम अलहदा और अलग अर्थ वाले| सबसे कॉमन तुलसी के मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं| जिनके बारे में बचपन से पढ़ते सुनते आ रहे हैं| एक धार्मिक हिंदू परिवार में जन्म लेने की वजह से रामचरित मानस वाले राम से बचपन से परिचित हैं| ये राम करीब - करीब आदर्श हैं| इनके इस कैरेक्टर की शुरुआत आदर्श बेटे के रूप में होती है और आदर्श राजा बनने के प्रयास पर खत्म होती है| जिसमें वे आदर्श भाई भी हैं| वर्तमान में एक बौद्धिक धड़ा उनके आदर्श पति होने पर सवाल खड़ा करता है| इसे लेकर मेरा व्यक्तिगत विचार है कि आदर्श राजा या बहुत बड़ा समाज सुधारक कभी आदर्श पिता या पति नहीं बन पाता| सार्वजनिक जीवन का एक बड़ा बिंदु है| अब इसे आदर्शवाद का ड्रॉ बैक माना जाए या कुछ और| वर्तमान में हम देखते हैं तो गांधी और रूसी क्रांतिकारी लेनिन सबसे बड़े उदाहरण हैं| दोनों के सार्वजनिक जीवन ने उन्हें आदर्श पिता नहीं बनने दिया|

दूसरे राम से परिचय इंटरमीडियट और ग्रेजुएशन में हुआ| ये कबीर के राम हैं| निर्गुण ब्रह्म| इस राम का पहले वाले से राम से कोई नाता नहीं है| ये राम सर्व व्यापी, परम तत्व और आत्माराम हैं | कबीर कहते हैं कि -
“निरगुण राम निरगुण राम जपहु रे भाई।
अवगति की गति लखी न जाई।।
चारि वेद जाके सुमृत पुराना”

कबीर दास राम के बारे में कहते हैं कि वह लोक और वेद दोनों से परे है। वह सारे संसार से अलग है। न उसका कोई गाँव है, न ठाँव, न उसका कोई रूप है न रेख न गुण न वेश। न वह बालक है न युवा न वृद्धि। ऐसा साहब कुल रहित है। वह अपने आप ही अपने को मुक्त कर लेता है।’’ कबीर निर्गुण, निराकार ब्रह्म के बारे में आगे कहते हैं कि उसका रूप स्वरूप कुछ कहते नहीं बनता। उसका हल्कापन या भारीपन भी नहीं तौला जा सकता। वह भूख-तृष्णा, धूप-छाँह, सुख-दुःख सभी से रहित है। वह अविगत अपरंपार ब्रह्म ज्ञान रूप और सर्वत्र विद्यमान है उसके समान दूसरा कोई नहीं है।’’


तीसरे राम गांधी के हैं| जिन्हें उन्होंने ब्रिटिश उपिनेश से मुक्त होकर नए स्वराज के रूप में देखा| राम राज्य मतलब एक ऐसा राज्य जिसमें किसी भी तरह की गैर बराबरी और वर्ग संघर्ष की जगह न हो| एक ऐसा राज्य जो किसी भी तरह से जाति और धार्मिक भेदभाव पर आधारित न हो| यह एक लोक कल्याणकारी और विकेन्द्रित शक्ति वाले राज्य की संकल्पना है| इस राम और राज्य की संकल्पना कुछ हद तक तुलसी के आदर्श राम से ली गई है| लेकिन गांधी ने इसमें लोकतंत्र को अपनी तरफ से जोड़ा है|
गांधी ने राम राज्य के आशय को स्पष्ट करते हुए 1929 में यंग इंडिया के एक अंक में लिखा -

by ram raj I do not mean Hindu rajya. I mean by ram raj, a divine raj. the kingdom of god. for me ram and rahim are one and same deity. I acknowledge no other god but the one god of truth and righteousness. whether ram of my imagination ever lived or not on this earth. the ancient ideal of ramrajya is undub- tedly one of true democracy in which meant citizen could be sure of swift justice without an elaborate and costly procedure.

गांधी के राम राज्य की संकल्पना को अक्सर धर्म/संप्रदायिक मान्यताओं पर आधारित माना जाता रहा है| जिसके कारण दलित की शिकायत रहती रही है कि इस राज्य में दलित दोयम दर्जे के नागरिक होंगे| लेकिन गांधी ने एक बार और 26 फरवरी  1947 के हरिजन अंक में लिखा कि इसे हिंदू राज समझने की गलती नहीं करनी चाहिए| मेरे राम का आशय खुदा या गॉड से है| मैं खुदा का राज चाहता हूं| जिसका अर्थ the kingdom of god on earth है|
गांधी के राम राज में राम और रहीम दोनो बराबर हैं| दो जनवरी 1937 के हरिजन के अंक में उन्होंने लिखा कि - ram rajya is a rajya in which the sovereignty of the people will be based on pure moral authoraty.
विभाजन के बाद भड़के दंगों के समय 19 अक्टूबर 1947 को उन्होंने लिखा कि हमारा हिंदू धर्म सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाता है| यही राम राज्य का मूल है| गांधी के राम को कबीर का यह दोहा भी सपोर्ट करता है -
मैं वासा मोई किया दुरिजन काठे इरि
राम पियारे राम का नगर बस्या भरपूर
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चौथे राम आरएसएस और बीजेपी जैसे दक्षिण पंथी संगठनों के हैं| जिनके राम एक खास संप्रदाय और मान्यताओं वाले हैं| इनका राम राज्य वर्ण व्यवस्था और बहुसंख्यक आधारित है| जिसमें अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की मान्यताओं अनुसार जीने की बात की जाती है| ये राम संप्रदाय आधारित राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं| इसकी व्यवस्थित शुरुआत आरएसएस की स्थापना के साथ होती है|
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इस तरह सबके अपने अपने राम हैं| राम ने जय राम जी की/ सीता राम और राम राम से जय श्री राम तक का सफर तय कर लिया है| एक सौम्य छवि से प्रत्यंचा चढ़ाए ध्वंसक तक का सफर| एक गैर बराबरी रहित से लेकर बहुसंख्यक डोमिनेटेड हिंदू राष्ट्र तक का सफर| निराकार परम ब्रम्ह से मन मंदिर और मंदिर के नाम पर हत्याओं तक से गुरेज न करने तक का सफर| आध्यात्मिक, साहित्यिक, लोकतांत्रिक और हिंदू राष्ट्रवादी छवि वाले राम| चुनना आपको और हमको है| कौन से राम पसंद आते हैं|
फिलहाल अब जय राम जी की|

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