एक सुबह ..

सुबह सुबह चुपके से रोशनी कमरे में किसी घुसपैठिए जैसी आती है| पहले एक झिर्री फिर दो और कुछ पलों में पूरे कमरे पर कब्जा | आज देर तक सोने का मन था, पर रोशनी के शोर ने ऐसा नहीं होने दिया | 

हम कई बार चाह कर भी कोई चीज नहीं रोक पाते | रोकना बस में होने पर भी | मैं खिड़की को लगातार अलसाई नज़रों से देखता रहा ... पर हाथ-पांव ने अपना काम करने से इंकार कर दिया | थोड़ी देर बाद उस खिड़की से कई सारी चीजें ऐसी दिखनी शुरू हुई जो पहले कभी नहीं दिखा करती थी | 

सबसे पहले एक बादल का टुकड़ा दिखा ..तैरता हुआ ..जैसे वह कमरे में झांक कर कह रहा हो, ...'की हाल भायो ...आजकल तुम भीगते नहीं बारिश में ...!' फिर सामने की छत पर उगा एक पौधा दिखा | वह हवा में लहरा रहा था... जबकि उसे अपनी उम्र मालूम है .. | कुछ देर में एक परिंदा भी दिखा ..वह कुछ कुछ परेशान था | शायद वह कुछ कहना चाहता था..जैसे कि ..बच्चे उसे तंग करना छोड़ दिए हैं..., उनके पास टाईम का टोटा हो गया है |

 यह सब मैं देखता जा रहा था...बिल्कुल किसी फिल्मी रील की तरह ...फिर अचानक ही छत से लटकता नीबू मिर्ची का एक गुच्छा दिखा ...वह हवा में इस कदर कांप रहा था जैसे गिर जाना चाहता हो और कहना चाहता हो कि जिंदगी में किसी टोटके जैसे फार्मूले की कोई जगह नहीं |

कोई दूसरी फिल्म शुरू हो इसके पहले किसी तरह लगभग लड़खड़ाते हुए उठा और सब खिड़की दरवाजे बंद कर अंधेरा कर लिया ...पर थोड़ी देर बाद पता चला रोशनी झिर्रियों से आ रही...|



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक नदी की सांस्कृतिक यात्रा और जीवन दर्शन का अमृत है 'सौंदर्य की नदी नर्मदा'

गड़रिये का जीवन : सरदार पूर्ण सिंह

तलवार का सिद्धांत (Doctrine of sword )

युद्धरत और धार्मिक जकड़े समाज में महिला की स्थित समझने का क्रैश कोर्स है ‘पेशेंस ऑफ स्टोन’

माचिस की तीलियां सिर्फ आग ही नहीं लगाती...

स्त्री का अपरिवर्तनशील चेहरा हुसैन की 'गज गामिनी'

ईको रूम है सोशल मीडिया, खत्म कर रहा लोकतांत्रिक सोच

महत्वाकांक्षाओं की तड़प और उसकी काव्यात्मक यात्रा

महात्मा गांधी का नेहरू को 1945 में लिखा गया पत्र और उसका जवाब

चाय की केतली