नहीं स्वीकार ऐसा लोकतंत्र
जहां भूख से
मरते बच्चे,
कर्ज के बोझ से
दबे किसान,
शिक्षा का हक़ मांगते
युवाओं का
सड़कों पर उतरना
खतरा बन जाए,
बिना जमीर जिंदा होना
एक शर्त बन जाए,
जहां सवाल पूछना
देशद्रोह कहा जाए,
हक मांगना विकास का
रोड़ा बन जाए
मैं थूकता हूं
ऐसे लोकतंत्र पर।
जहां संविधान और
विज्ञान नहीं,
धर्म रटने पर
पुरस्कार दिया जाए,
सिर कटाना ही
देशभक्ति बन जाए,
मैं थूकता हूं
ऐसे लोकतंत्र पर।
अरे.. मैने तो संविधान को
गीता कुरान से भी
पवित्र माना था,
लोकतंत्र को
अपना तंत्र माना था,
जिसमें सब
अपनी बात को
बा-आवाज-ए-बुलंद
रख सकें,
इसे आसमान
से भी विशाल
अर्थों वाला माना था,
वसुधैव कुटुंबकम का पहला
चरण माना था ।
यह तो सत्ता के दलालों
के हाथ फंस कर रह गया
कार्पोरेटों के हाथ
खेलने लग गया,
हमने इसे घर
जैसा माना था,
जहां एक का दुख
सबका दुख होता है,
लेकिन यह क्या !
जिसे हमने चुनकर
संसद भेजा,
वह कुर्सी पाते ही
बेगाना निकला ,
लोकतंत्र तो
उल्लू बनाने का
कारखाना निकला,
गर ऐसा ही होता है
लोकतंत्र
तो थूकता हूं इस पर ।
गर हड़ताल को कुचलकर
विकास का फूल खिलेगा
कला का रंग बस
लुटियंस जोनों में चढ़ेगा,
चुना हुआ प्रतिनिधि बस
एक प्रतिशत की ही सुनेगा,
तो थूकता हूं
ऐसे लोकतंत्र पर।
हर बार थूकूंगा
इस पर,
कितनी बार
लटकाओगे
फांसी पर ... ।
मरते बच्चे,
कर्ज के बोझ से
दबे किसान,
शिक्षा का हक़ मांगते
युवाओं का
सड़कों पर उतरना
खतरा बन जाए,
बिना जमीर जिंदा होना
एक शर्त बन जाए,
जहां सवाल पूछना
देशद्रोह कहा जाए,
हक मांगना विकास का
रोड़ा बन जाए
मैं थूकता हूं
ऐसे लोकतंत्र पर।
जहां संविधान और
विज्ञान नहीं,
धर्म रटने पर
पुरस्कार दिया जाए,
सिर कटाना ही
देशभक्ति बन जाए,
मैं थूकता हूं
ऐसे लोकतंत्र पर।
अरे.. मैने तो संविधान को
गीता कुरान से भी
पवित्र माना था,
लोकतंत्र को
अपना तंत्र माना था,
जिसमें सब
अपनी बात को
बा-आवाज-ए-बुलंद
रख सकें,
इसे आसमान
से भी विशाल
अर्थों वाला माना था,
वसुधैव कुटुंबकम का पहला
चरण माना था ।
यह तो सत्ता के दलालों
के हाथ फंस कर रह गया
कार्पोरेटों के हाथ
खेलने लग गया,
हमने इसे घर
जैसा माना था,
जहां एक का दुख
सबका दुख होता है,
लेकिन यह क्या !
जिसे हमने चुनकर
संसद भेजा,
वह कुर्सी पाते ही
बेगाना निकला ,
लोकतंत्र तो
उल्लू बनाने का
कारखाना निकला,
गर ऐसा ही होता है
लोकतंत्र
तो थूकता हूं इस पर ।
गर हड़ताल को कुचलकर
विकास का फूल खिलेगा
कला का रंग बस
लुटियंस जोनों में चढ़ेगा,
चुना हुआ प्रतिनिधि बस
एक प्रतिशत की ही सुनेगा,
तो थूकता हूं
ऐसे लोकतंत्र पर।
हर बार थूकूंगा
इस पर,
कितनी बार
लटकाओगे
फांसी पर ... ।
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