क्योंकि इंसान जो हो

यूं ही फिसलती जाएगी जिंदगी
बनती जाएंगी नई तस्वीरें
कुछ बेसुरे सुर-ताल फूटेंगे
कविताएं खुदकुशी कर
कहानियां बन जाएंगी
एक दिन वे भी मोटे जिल्द वाली
किताबों में दफ्र हो जाएंगी
फिर आएंगे ख्वाब उम्र भर
एक दिन वे ख्वाब भी डरावने हो जाएंगे
क्योंकि तुम इंसान जो हो
उन्हें बीच में ही तोड़ के उठ जाओगे
फिर बनाओगे एक मुस्कराती तस्वीर
लोगों के लिए वह रहस्य होगी
तुम्हरे लिए इंद्र धनुषी ख्वाब
ऐसा तुम बार-बार नहीं हजार बार करोगे
बस करते जाओगे
एक दिन तुम और तुम्हारी तस्वीर दोनों
दुनिया के लिए रहस्य बन जाओगे
पर जल्द ही ऊबोगे
इन तस्वीरों और ख्वाबों से
क्योंकि इंसान जो हो
कुछ नए ख्वाब, कुछ नए रंगों के लिए भागोंगे
पर चारो तरफ घना अंधेरा होगा
इस जंगल में खुद को अकेला पाओगे

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