नोयडा : एक आत्मा विहीन शहर

जब मैं पहली बार नोयडा आ रहा था तो मन में अजब तरीके का उत्साह था इस नये शहर से मुलाकात करने के लिए | बार-बार दिमाग में एक खास छवि बन रही थी | शायद वह बन रही छवि मेरे द्वारा देखे गये वाराणसी और इलाहाबाद से बेहतर की कल्पना थी | वाराणसी और इलाहाबाद दोनों संस्कृति संपन्न शहर हैं लेकिन भली-भांति ढ़ाचागत विकास न होने तथा बहुत पुराने होने के कारण काफी हद तक अनियोजित हैं इसीलिए लोग इन्हें पिछड़ा शहर कहते हैं |
एक बार तो मेरी दिमागी कल्पना यथार्थ में बदलते हुए दिखी |चौड़ी, चमचाती सड़कें, ऊंची-ऊंची अट्टालिकाऐं आदि वह सब कुछ दिखा जो कि वर्तमान में किसी भी शहर को स्मार्ट प्रमाणित करने के लिए योग्यता मानी दजाती है | और तो और अब तक जहां मैनें  इलाहाबाद में तीन सालों में तीन  से चार बार मुश्किल से सड़कों की लिपाई पुताई होते देखा था वहीं नोयडा में यह रोज दिखता है | लेकिन मैनें यहां मुश्किल से छ:माह ही गुजारा होगा कि इस शहर की स्मार्टनेस से मेरा परिचय होना शुरू हो गया | 
धीरे-धीरे यह भी पता चला कि यह  शहर आत्मा यानी संस्कृति विहीन है | नोयडा एक ऐसा शहर जिसकी अपनी न तो कोई सांस्कृतिक विरासत है और न ही कोई सभ्यता | यह मात्र धनपशुओं का अड्डा है | यह आधुनिक शहर त्योहारों के मौके पर मरघट नजर आता है | यह हालत देखकर स्मार्ट सिटी के नाम से ही डर लगता है | नोयडा से सटे गांवों की हालत तो धोबी का कुत्ता घर का न घाट का जैसी है | ये न तो गांव रहे और नहीं शहर ही बन पाये | दरवाजे पर बंधी भैंसों की जगह मंहगी गाड़ियों ने ले लिया और गांव की साफ सुथरी गलियों की जगह गंदी, अंधेरी गलियों और बजबजाती नालियों ने ले लिया है | अगर ऐसे ही स्मार्ट सिटी बनती है तो तौबा तौबा |




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