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मानुष गंध

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मुट्‌ठी से फिसला हुआ छुट्‌टी का दिन और शाम के कुछ घंटे

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फाइल फोटो, साभार गूगल। मुट्ठी से जिस तरह रेत सरकती है उसी तरह छूट्‌टी के दिन, दिन फिसल जाता है। सुबह आधे घंटे ज्यादा सोया जाता है। दोपहर को फिर पेट भरने का इंतजाम मुश्किल से। इस तरह एक लंबी नींद लेने के बाद जब आंख खुलती है तो शाम कमरे में आ चुकी होती है। दिन तो रोज के जैसा ही रहता है लेकिन यह शाम थोड़ी तो अलग होती है। गली में कई नए चेहरे नजर आते हैं। जो अन्य दिन कभी नहीं दिखते। बर्फ गोले वाले की घंटी सुनाई पड़ती है। पड़ोसी की प्ले लिस्ट का पता चलता है। यह शाम बहुत ठहराव लिए होती है। जैसे लगता है कि दुनिया को कहीं नहीं जाना है। सब इस शाम की मंद-मंद खुशी में शरीक हैं। छुट्‌टी की शाम ही पता चलता है कि मुहल्ले में बच्चे भी रहते हैं। अपने मम्मी-पापा की अंगुली पकड़ कर चॉकलेट खरीदने की जिद करते हुए। हमजोलियों के साथ धमाचौकड़ी करते हुए। ये आजाद हो चुके होते हैं दस किलो के बस्ते और गले में फंसी टाई से। हां होमवर्क से अभी भी ये अपना पिंड नहीं छुड़ा पाए होते। लेकिन यह एक से दो घंटे का वक्त इनका अपना जरूर होता है। थोड़ा और बढ़िए तो एक ताजा हवा का झोंका आता है और मन को भिगो कर चला जाता है। यह परफ्य

ईको रूम है सोशल मीडिया, खत्म कर रहा लोकतांत्रिक सोच

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pawel kuczynski  लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवाद और असहमति दो बेहद जरूरी तत्व हैं। इस व्यवस्था की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इस व्यवस्था में रहने वाले लोग व्यक्तिगत तौर पर कितने लोकतांत्रिक हैं। वे असहमति के स्वर को कितनी जगह देते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी बात रखते हुए कई बार विचार आता है कि क्या यह प्लेटफॉर्म हमारे  लोकतांत्रिक विचार को बढाता है ? क्या यह यूजर को दूसरे की असहमति को स्पेस देना सिखाता है ? सोशल मीडिया जब नया नया आया था तो कहा यही गया था कि इससे दुनिया ग्लोबल हो गई। लोग अपनी बात को बगैर काटा छांट कर रख सकेंगे। दुनिया ग्लोबल तो उतनी नहीं हुई, लेकिन लोगों की बात बगैर सेंसर हुए रखी भी जाने लगी। इसके लोकतांत्रिक होने का पहला मजाक तो डेटा के हेरफेर ने कर दिया। यह बात शत प्रतिशत साबित हो चुकी है। अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप से लोगों का विचार बदलना हो या फिर ब्रिटेन में चल रहे ब्रेक्जिट जनमत संग्रह में । ऐसी घटनाओं ने इस टेक बेस्ड डेमोक्रेसी की सीमाओं का खुलासा कर दिया है। यह साफ साफ बता रहा है कि सोशल मीडिया बेस्ड डेमोक्रेसी की लगाम किसी और के हाथ