गोल रोटियों का हसीन सपना


खाना बनाते समय सारी रोटी फूलने की सफलता को 'हैप्पीनेस ऑफ द डे' की कैटेगरी में रखा जा सकता है या नहीं ! मेरे ख्याल से यह डिजर्व करता है. रोटी पलटने और फिर उसे गैस चूल्हे की आंच पर रखने का टाइमिंग वैसा ही होता है जैसे पानी में डुबोकर बिस्किट खाना और पुरानी बुलेट का किक मारने से पहले कांटा मिलाना. रोटी में जैसे, जैसे भाप भरती है, वह टू डी से थ्री डी में बदलती है, करेजा भी एकदम गद्गद् होता जाता है. जब तक उसकी भाप नहीं निकली होती, ऐसा लगता है ... बस्स चांद तारे सूरज सब ठहर जाएं और ये यूं ही फूली रहे . लेकिन जिस तरह सूरज का निकलने के बाद डूबना तय है, इस धरती पर जन्म लेने वाले जीव का मरना तय है, उसी तरह तरह फूली हुई रोटी का पिचकना तय है. सूंsssss की आवाज के साथ कहीं न कहीं से छेद हो ही जाता है.
बनाई गई सभी रोटियों का फूलना एक ऐसी दुर्लभ घटना है जो हमारे अब तक पाक कला के एक्सपीरियंस में यदा-कदा हुई है. अक्सर फूली और न फूली रोटियों का अनुपात फिफ्टी-फिफ्टी का होता है.
रोटी का पूरी तरह गोल, जिस तरह अम्मा को बनाना देखा है, वह हमारे लिए अभी भी फैसनेटिंग है. सचिन तेंदुलकर को चौका मारते देखकर आहें भरता है कोई युवा क्रिकेटर उसी तरह मैं गोल रोटियां देखकर. अभी भी हमसे लगभग आस्ट्रेलिया और अफ्रीका ही बनती है. रोटी गोल और अच्छे से फूली हुई, कम परथन वाली सुंदर सी बना पाना भी जिंदगी के कई सारे हसीन सपनों में से एक है.



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