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सभ्यता का संकट और भारतीय बुद्धिजीवी/ किशन पटनायक

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देश की समस्याएं जैसे – जैसे  गहरा रही हैं और समाधान समझ के बाहर हो रहा है , वैसे – वैसे कुछ सोचनेवालों की नजर राजनीति और प्रशासन के परे जाकर समस्याओं की जड़ ढ़ूंढ़ने की कोशिश कर रही है । वैसे तो औसत राजनेता , औसत पत्रकार , औसत पढ़ा – लिखा आदमी अब भी बातचीत और वाद – विवाद में सारा दोष राजनैतिक नेताओं , चुनाव – प्रणाली या प्रशासन के भ्रष्ताचार में ही देखता है । लेकिन , क्या वही आदमी कभी आत्मविश्लेषण के क्षणों में यह सोच पाता है कि वह भी उस भ्रष्टाचार में किस तरह जकड़ा हुआ है । वह यह सोच नहीं पाता है कि वह भी उस भ्रष्टाचार में किस तरह जकड़ा हुआ है । वह यह सोच नहीं पाता कि किस तरह वह खुद के भ्रष्टाचार को रोक सकता है । कुछ लोग अपने को प्रगतिशील मानते हैं । वे कहीं-न-कहीं समाजवादी या साम्यवादी राजनीति से जुड़े हुए हैं । कुछ साल पहले तक ऐसे लोग जोश और जोर के साथ बता सकते थे कि आर्थिक व्यवस्था के परिवर्तन से सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा । पिछले वर्षों में उनका यह आत्मविश्वास क्षीण हुआ है । साम्यवादी और समाजवादी कई गुटों में विभक्त हो चुके हैं । उनकी राजनीति के जरिए तीसरी द

गांधी और सत्याग्रह के प्रति जिज्ञासु बनाती है यह किताब

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जब नील का दाग मिटा : चंपारण 1917 प्रकाशन - राजकमल लेखक - पुष्यमित्र चंपारण सत्यागह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम मोड़ है| पहली बार भारतीय भूमि पर सत्य का राजनीतिक और सामाजिक बदलाव के लिए प्रयोग होता है| यही वह मोड़ है जब खेतिहर जनता कार्पोरेट फॉर्मिंग के खिलाफ खुलकर मुखर होती है और अपने आंदोलन को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने का प्रयास करती है| सबसे महत्वपूर्ण है यह है कि इसी मोड़ पर गांधी पहली बार भारतीय गांवों और उसकी समस्याओं से रू-ब-रू होते हैं| जब नील का दाग मिटा : चंपारण 1917 इस ऐतिहासिक मोड़ की घटनाओं को संजोने वाली पॉकेट बुक है| अभी तक चंपारण सत्याग्रह के नायक के तौर पर सिर्फ महात्मा गांधी को याद किया जाता है| लेकिन यह किताब बीसों ऐसे नायकों को सामने लाती है जिनके बिना चंपारण सत्याग्रह संभव ही नहीं था| इन नायकों में किसका काम सबसे महत्वपूर्ण था, इसका आंकलन तो संभव नहीं क्योंकि हर कोई महत्वपूर्ण नजर आता है| लेकिन शुरुआत की जाए तो राजकुमार शुक्ल पहला नाम है| जो गांधी को चंपारण लेकर आए| इनके साथ शीतल राय, शेख गुलाब और पीर मोहम्मद मुनिश जैसे बीसों नाम हैं| यह किताब है तो