एंटी फासिज्म सिर्फ आतंकित कर सकता है , दक्षिणपंथी लोकप्रियतावाद को रोकना इसके बस की बात नहीं

स्लावोज़ ज़ीज़ेक
काल मार्क्स के उस फारमूले पर पर दोबारा सोचने की जरूरत है, जिसमें वे धर्म को अफीम बताते हैं। यह सत्य है कि कट्‌टरपंथी इस्लाम धर्म के अफीम जैसा होने का उदाहरण पेश करता है। यह कुछ फंडामेंटलिस्ट मुस्लिमों को अपने वैचारिक स्वप्न में रहते हुए पूंजीवादी आधुनिकता के साथ झूठे टकराव की इजाजत देता है। ऐसे में जबकि कई इस्लामिक देश वैश्विक पूंजीवाद की वजह से तबाह हो रहे हैं।  ठीक इसी तरह ईसाई कट्‌टरता भी है। हालांकि इस समय पश्चिम में अफीम के दो वर्जन हैं, 'अफीम और लोग'।

जैसा कि लारेंट सटर ने इस दिखाया कि रसायन विज्ञान हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन रहा है। हमारी जिंदगी के बड़े हिस्से भावनाओं आदि का प्रबंधन नींद की गोलियों, एंटी डिपेंडेंट्स से लेकर हार्ड नार्कोटिक्स से होता है। अब हम सिर्फ सामाजिक शक्तियों से ही नहीं घिरे हैं। हमारी बहुत सी भावनाएं केमिकल सेमुलेशन से आउट सोर्स होती हैं। यह रासायनिक हस्तक्षेप दोगुना हुआ है और काफी विरोधाभासी भी। एक तरफ हम ड्रग का उपयोग बाह्य उत्तेजना आदि को नियंत्रित करने के लिए करते हैं दूसरी तरफ अवसादग्रस्तता और इच्छा की कमी, विचेतन और आर्टिफिसियल तरीके से उत्तेजित करने के लिए कर रहे हैं।

लोकप्रियतावाद (पापुलिज्म) का उभार दर्शाता है कि लोगों की अफीम लोग स्वयं  हैं। धुंधले पापुलिस्ट सपने हमें अपने विरोधियों से दूर कर देते हैं। हालांकि मैं इसमें एंटी फासिज्म जोड़ना चाहूंगा। अमेरिका और यूरोप में प्रगतिशील राजनीति का शिकार इन दिनों फासिज्म का भूत कर रहा है। अमेरिका में ट्रंप, फ्रांस में ली पेन, हंगरी में ऑरबन ने खुद को ऐसे शैतान की तरह प्रदशिैतकिया है जिसके खिलाफ हम सब को अपनी पूरी शक्ति से एकजुट हो जाना चाहिए। संशय और संदेह का छोटा सा टुकड़ा भी फासीवाद के साथ गुप्त गठबंधन की घोषणा करता है। जो नए फासीवाद से लड़ना चाहते हैं उनमें से कुछ लोगों का इमानुएल मैक्रॉन ने इंटरव्यू किया। यह स्पीगल के अक्टूबर 2017 अंक में प्रकाशित हुआ था। इसमें मैक्रॉन ने काफी उत्साहजनक जवाब हासिल किया। जिसमें उन्होंने बताया कि दक्षिण पंथी चरमपंथी पार्टियों पर प्रतिक्रिया करने के तीन तरीके हैं। पहला यह, इस तरह व्यक्त करना कि जैसे वे मौजूद ही नहीं हैं। इस तरह के जोखिम न उठाए जाएं जिससे कि दक्षिण पंथी पार्टियों को आपके खिलाफ फायदा मिल जाए। ऐसा फ्रांस में कई बार हुआ है। हमने देखा है कि यह काम नहीं करता। वास्तव में वे लोग जिनसे आप लंबे सहयोग की उम्मीद नहीं करते वे ही पार्टी के भाषणों में दिखाई देने लगते हैं। इस तरह दक्षिण पंथ अपने आडियंस जुटा लेता है। दूसरा तरीका है दक्षिण पंथी पार्टियों का सम्मोहन के मामले में पीछा किया जाए। तीसरी संभावना है इन पार्टियों को अपना वास्तविक शत्रु माना जाए और उन्हें संघर्ष में व्यस्त रखा जाए। ठीक यही कहानी फ्रांस के दूसरे दौर के चुनाव में दोहराई गई थी।

 मैक्रॉन का कार्य काफी सराहनीय है। वे इस कठिन समय में आत्म विश्लेषण की सामाग्री मुहैया कराते हैं। फासीवादी खतरे की जो छवि दिखाई पड़ती है वह नई राजनीतिक अंधभक्ति है। फ्रायडियन में इसका अर्थ है ऐसी आकर्षक छवि है जो वास्तविक विरोधियों को उलझा देती है। फासिज्म अपने आप में अंधभक्ति ही है। इसे एक परालौकिक व्यक्तित्व की जरूरत होती है। जो बाह्य परेशानियों से ऊपर उठा ले। इस तरह के व्यक्तित्व वास्तविक विरोधियों को दरकिनार करने में सक्षम होते हैं। आज की उदार कल्पना में फासिस्ट व्यक्तित्व के लिए यही चाहिए। यह लोगों को ऐसी चीजों में उलझाए रखता है  जिससे वास्तविक समस्या की जड़ ही पता नहीं चलती।

फ्रांस के पिछले चुनाव में प्रत्येक वामपंथी ने मैक्रॉन पर संदेह जताया और तुरंत ली पेन के समर्थन के लिए निंदा भी कर दिया। इसका सही उद्देश्य वामपंथ का उन्मूलन था। जबकि मैक्रॉन को इसका हथियार बनाया गया। गंदे वैकल्पिक दक्षिण पंथ से हमने पहले ही समझौता कर लिया है। ऐसे में इससे समझौता करने का कोई खतरा अब नहीं है। इस आलोचनात्मक प्रतिबिंब के हर संकेत का स्वागत किया जाना चाहिए। जो धीरे-धीरे उभर रहा है। साथ ही जो पूरी तरह एंटी फासिस्ट हैं उन्हें एक आलोचनात्मक नजर उदारवादी वामपंथ की कमजोरियों पर भी नजर डालनी चाहिए। जब हमने ध्यान खींचा कि किस तरह दक्षिण पंथ के कुछ हिस्से लिबरल लेफ्ट द्वारा उपेक्षित कर दिए गए। वर्किंग क्लॉस के मुद्दों को इकट्‌ठा कर रहे हैं। उम्मीद के मुताबकि हम पर तुरंत कट्‌टर वामपंथ और फासीवाद के बीच गठबंधन का आरोप लगाया दिया गया। जो कि मैनें नहीं किया था। अब टास्क यह है कि दक्षिणपंथ द्वारा अपने भाषणों में वर्किंग क्लॉस को जो ऑक्सीजन दी जाती है उसे काटना होगा। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए अधिक कट्टर और क्रिटिकल मैसेज के साथ साथ अधिक वापंथ की ओर जाना होगा। दूसरे शब्दों में सैंडर्स और कार्बीन क्या कर रहे थे और उनके रिश्तेदारों की सफलता का मूल क्या है। इसी तरह शरणार्थियों के मुद्दे पर आते हैं। अधिकांश शरणार्थी यूरोप में नहीं रहना चाहते। वे अपने घर वापस जाकर वापस सम्मानजनक जीवन जीना चाहते हैं। लक्ष्य को हासिल करने के लिए पश्चिमी शक्तियां इसे मानवतावादी संकट के तौर पर देखती हैं। इसके दो चरम हैं आतिथ्य और जान गंवाने का डर है। जो कि रिफ्यूजी और स्थानीय वर्किंग क्लॉस के बीच स्यूडो कल्चरल कॉन्फ्लिक्ट का कारण बनता है। जो कि राजनीतिक और आर्थिक संघर्ष से सिविलाइजेशन का संघर्ष बन जाता है।

हम उस अफसोसजनक संभावना का इंतजार कर रहे हैं जो कि हमारा भविष्य होने वाला है। प्रत्येक चार/पांच साल में हमें एक पैनिक और नए फासीवाद के खतरे के डर में ढ़केल दिया जाएगा। इस तरह हमें सिविलाइज्ड उम्मीदवार के नाम वोट देने के लिए ब्लैकमेल किया जाएगा। इन अर्थहीन चुनावों में सकारात्मक दृष्टिकोण का अभाव होगा। इस बीच हम एक मानव चेहरे के साथ वैश्विक पूंजीवाद की सुरक्षित गोद में सो सकते हैं। इस अश्लील स्थिति में सांस लेने वाली बात यह है कि इस समय वैश्विक पूंजीवाद खुद को फासिज्म के खिलाफ अंतिम शरणस्थली की तरह पेश कर रहा है। यदि इसे आप इंगित कोशिश करेंगे तो फासीवाद के साथ होने का अरोप झेलना पड़ेगा। आज का फासीवाद विरोध कोई उम्मीद नहीं जगाता। यह उम्मीदों को मारता है। उम्मीद है कि हम वास्तव में नस्लवादी लोकप्रियतावाद के खतरे से छुटकारा पाएंगे।
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(मूल लेख 'today's anti-fascist movement will do nothing to get rid of right-wing populism – it's just panicky posturing' नाम से इंडिपेंडेंट में प्रकाशित हुआ था, अनुवाद की कोशिश मैनें की है।) 


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