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जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गड़रिये का जीवन : सरदार पूर्ण सिंह

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आज फेसबुक स्क्रॉल करते वक्त रतनजीत सा की पोस्ट की हुई गड़रिये की यह तस्वीर दिख गई। इस तस्वीर से घर-गांव की कई स्मृतियां ताजी हो गईं। इसके बाद ग्रेजुएशन के दौरान पढ़ा गया सरदार पूर्ण सिंह का यह निबंध भी याद आ गया। इस पढ़कर गड़रिये बन जाने का मन करता है। बचपन में कई बार हम सब भेड़ें चराने के खूबसूरत सपने देखा करते थे। बारिस पहले जून महीने के आसपास खेतों में भेंड लेकर डेरा डालना और भउरी चोखा बनाना। तारों से भरे आसमान में सोना रोमांचित करता था। रंजीत सा को साभार, इस तस्वीर के लिए।     गड़रिये का जीवन- एक बार मैंने एक बुड्ढे गड़रिये को देखा। घना जंगल है। हरे-हरे वृक्षों के नीचे उसकी सफेद ऊन वाली भेड़ें अपना मुँह नीचे किए हुए कोमल-कोमल पत्तियाँ खा रही हैं। गड़रिया बैठा आकाश की ओर देख रहा है। ऊन कातता जाता है। उसकी आँखों में प्रेम-लाली छाई हुई है। वह निरोगता की पवित्र मदिरा से मस्त हो रहा है। बाल उसके सारे सुफेद हैं और क्यों न सुफेद हों? सुफेद भेड़ों का मालिक जो ठहरा। परंतु उसके कपोलों से लाली फूट रही है। बरफानी देशों में वह मानो विष्णु के समान क्षीरसागर में लेटा है। उसकी प्यारी