हत्या
सुबह का अखबार
रंगा है हत्याओं से
घर में हत्या
बाहर हत्या
सडक़ पर हत्या
स्कूल में हत्या
बस हर तरफ
हत्या ही हत्या
इन हत्याओं के
कितने ठंग हैं
कहीं बंदूक से हत्या
कहीं भूख से हत्या
जाति, धर्म से हत्या
बुंदेलखंड से
विदर्भ तक
श्रीलंका से
सीरिया तक
हत्याओं का अंतहीन
सिलसिला है
21वीं सदी की
हर सुबह पर
खून के धब्बे हैं
अखबार पलटने पर
मन में एक ही
सवाल आता है
सवाल आता है
अगले 100 साल बाद
अखबार पर क्या होगा ?
खून का धब्बा
या कबूतर ?
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