मकबूल फि़दा हुसैन से एक संक्षिप्त मुलाकात
''पाँच हज़ार सालों से हिंदुस्तान की कला चल रही है। बीच में कैसे-कैसे लोग आए। कुछ हुआ है ! कभी नहीं हुआ, जऱा सा भी नहीं हुआ। अजंता जैसी गुफ़ाओं में क्या-क्या है, उसका मुक़ाबला है कोई। कला कभी नहीं रुक सकती।''
भारत के पिकासो मक़बूल फि़दा हुसैन ने भले ही दुनिया को अलविदा कह दिया हो पर उनको भारतीय चित्रकला को देश से बाहर ले जाने के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। उन्होनें अकूत शोहरत और दौलत कमाई तो उनके दामन से विवादों का भी लगाव रहा। चित्रकार होने के साथ-साथ वे फि़ल्मकार भी रहे। मीनाक्षी, गजगामिनी जैसी फि़ल्में बनाईं। उनका माधुरी प्रेम तो ख़ासा चर्चा में रहा ।
इंटरनेट की दुनिया में भटके-भटकते एक दिन बीबीसी पर मकबूल साहब का इंटरव्यू हाथ लग गया, तो सोचा क्यों न इसे संजो लिया जाए। यह संक्षिप्त इंटरव्यू बीबीसी पत्रकार वंदना ने साल 2011 में लंदन स्थित उनके अपार्टमेंट पर लिया था।
एमएफ़ हुसैन क्या कर रहे हैं इन दिनों? भारत में तो लोगों को आपको दीदार नहीं होते। यहाँ लंदन में आपसे मुलाक़ात हो रही है?
नहीं ऐसी बात नहीं है, जहाँ भी रहता हूँ पेंटिंग करता रहता हूं। वो चीज़ तो नहीं रुक रही। ख़ासतौर पर लंदन में तो ऐसा लगता ही नहीं है कि विदेशी मुल्क़ में हूं। मैं यहाँ पचास साल से आ रहा हूं। लंदन और न्यूयॉर्क मुझे बहुत पसंद हैं।
आपकी चित्रकारी को लेकर हमेशा विवाद होता रहा है। एक ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात उठती है तो दूसरी ओर लोगों की भावनाएं।
ये मॉर्डन आर्ट है। इसे सबको समझने में देर लगती है। फिर लोकतंत्र है। सबको हक़ है। ये तो कहीं भी होता है, हर ज़माने के अंदर हुआ है। जब भी नई चीज़ होती है, उसे समझने वाले कम होते है। अब आम जनता को लेकर कहाँ चलेंगे।
तो इससे कलाकार की कला पर असर नहीं पड़ता?
पाँच हज़ार सालों से हिंदुस्तान की कला चल रही है। बीच में कैसे-कैसे लोग आए। कुछ हुआ है कभी नहीं हुआ, जऱा सा भी नहीं हुआ। अजंता जैसी गुफ़ाएँ में क्या-क्या है, उसका मुक़ाबला है कोई। कला कभी नहीं रुक सकती।
भारतीय चित्रकारों के चित्र आज विदेशों में ऊंचे दाम पर बिकने लगे हैं। आपकी ही पेंटिंग 20 लाख डॉलर में बिकी। क्या आधुनिक भारतीय कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वो पहचान मिलने लगी है।
ये कद्रदान कौन है.. हमारे देशवासी ही हैं। विदेशों में बसे भारतीय ले रहे हैं. वे हिम्मत वाले हैं, वे कुछ कर दिखाना चाहते हैं। विज्ञान-तकनीक के क्षेत्र में जिस तरह काम कर रहे हैं हैरान हैं सब. तो ये लोग खऱीद रहे हैं. पुराने लोगों को पता नहीं है। हमारी नई पीढ़ी डायनमिक है, यही लोग खऱीदते हैं।
आपकी दूसरी पंसदीदा विधा फि़ल्मों की बात करते हैं। फि़ल्मों से आपका गहरा नाता रहा है। के आसिफ़ की मुग़ल-ए-आज़म फि़ल्म से आप जुड़े रहे हैं। के आसिफ़ से जुड़ी कुछ यादें बताइए।
हां जब मुग़ल-ए-आज़म बन रही थी तो के.आसिफ़ साहब ने कहा था कि युद्ध के दृश्य फि़ल्माने हैं, इसलिए मैं उन्हें युद्ध के समय के स्केच और उसमें पहने जाने वाले कवच वगैरह के स्केच लाकर दूं। मैं म्यूजय़िम गया और स्केच दिए। फिर वो एक और फि़ल्म बनाने वाले थे लव एंड गॉड। आसिफ़ साहब ने मुझसे कहा कि स्वर्ग को लेकर एक कलाकार की कल्पना कैसी हो सकती है, उसके स्केच मैं बनाऊं। मैं बना रहा था स्वर्ग के वो स्केच, इस बीच आसिफ़ साहब ख़ुद ही स्वर्ग सिधार गए।
मुग़ल-ए-आज़म तो ऑल-टाइम क्लासिक फि़ल्म है। आज भी वो प्रासंगिक है। इसमें हिंदुस्तान में अकबर के समय का धर्मनिरपेक्ष दौर दर्शाया गया है.. उसी पर मैं पेंटिंग भी बना रहा हूँ। करीब 40-50 पेंटिंग है. लंदन में म्यूजय़िम बन रहा है. के आसिफ़ की याद में ये म्यूजय़िम है।
शोले, डॉन, उमराव जान कितनी फि़ल्मों को दोबारा बनाया जा रहा है. क्या मुग़ल-ए-आज़म दोबारा बन सकती है?
मुग़ल-ए-आज़म को दोबारा नहीं बनाया जा सकता. मुग़ल-ए-आज़म के लिए के.आसिफ़ चाहिए और इस वक़्त के.आसिफ़ मिलना मुश्किल है. वो जो पैशन, विजऩ, उत्साह चाहिए वो कहाँ मिलेगा। अगर मुझे मौका मिले भी कि मैं मुग़ल-ए-आज़म बनाऊं तो भी ये गुस्ताख़ी मैं कभी नहीं करूँगा।
लोग तो आपको चित्रकार के तौर पर पहचानते हैं. सिनेमा से आपका लगाव कैसे शुरु हुआ ?
असल में तो मैं फि़ल्मकार बनना चाहता था. लेकिन मध्य वर्ग से आया तो फि़ल्म में पैसा कहाँ से आता। लेकिन मैने भी सोच रखा था कि एक दिन फि़ल्म बनाऊंगा। 50-60 साल लग गए इसमें। फिर मुझे ऐसी अभिनेत्री भी चाहिए थी जैसी मैं अपनी पेंटिंग में बनाता था। वो मुझे आकर माधुरी में दिखी। माधुरी जब मिल गई तो क्या बात है, बना दी फि़ल्म..
फि़ल्म कैसे बनी बताऊँ..(अगले सवाल को बीच में रोकते हुए). बॉलीवुड में फि़ल्म बनाना आसान थोड़े है। गजगामिनी में शाहरुख़, शबाना सब थे। क्या है मेरे पास पैसे तो थे नहीं, तो मैं मेकअप रूम में जाकर पेंटिंग करता था- शूटिंग के बीच-बीच में. वो पेंटिंग बिकती थी और उस पैसे से फि़ल्म बनती थी।
माधुरी में ऐसी क्या ख़ास बात है?
ये तो आप किसी से भी पूछ सकते हैं। एक भी व्यक्ति आपको नहीं मिलेगा जो कहेगा कि माधुरी में कुछ नहीं है। चाँद को कोई कुछ बोल सकता है। मेरी माँ उस समय गुजऱ गई जब मैं डेढ़ साल का था। वे महाराष्ट्र की थी, मराठी स्टाइल में साड़ी पहनती थी। तो वही छवि मुझे माधुरी में दिखी। अगर जीवन में मां नहीं है तो उस कमी को कोई भी पूरा नहीं कर सकता। वो ही मुझसे छीन ली गई. मैने जब भी मदर टेरेसा या किसी को बनाया ..बस माँ ही दिखी। मैने एक जगह कहा भी है कि ‘ये माधुरी नहीं है, ये मेरी मां अधूरी है’।
माधुरी महानतम अभिनेत्री हैं। अशोक कुमार ने एक बार कहा था, ‘भारतीय सिनेमा ने पिछले 100 सालों में ऐसी संपूर्ण अभिनेत्री नहीं देखी।’
आपने 1966 में एक फि़ल्म बनाई थी ‘थ्रू द आइज़ ऑफ़ ए पेंटर’ जिसे बर्लिन फि़ल्मोत्सव में अवार्ड मिला था। आज भारतीय फि़ल्मों को ऐसे प्रतिष्ठित पुरस्कार कम ही मिलते हैं।
लैंगवेज ऑफ़ सिनेमा क्या है..सिनेमा की भाषा क्या है। हम मनोरंजन के लिए फि़ल्में बनाते हैं, ख़ासकर बॉलीवुड.मनोरंजन करना कोई बुरी बात नहीं है, अवाम के लिए अच्छा है। लेकिन हमेशा अवाम को लेकर नहीं चल सकते साथ।
जैसे गाने में लता मंगेशकर होंगी तो दस हज़ार लोग आकर सुनेंगे लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि लता मंगेशकर महानतम गायिका हैं. आप सुब्बालक्ष्मी को देखिए। उसको सुनने के लिए भले ही 100-200 लोग ही आएंगे।
बहुत से लोग तो यही मानते हैं कि लता मंगेशकर महानतम गायिका हैं?
सबसे लोकप्रिय गायिका हैं ये कह सकते हैं, जो संगीत की बारिकियां हैं वो नहीं है। दस हज़ार आदमी उन्हें सुनते हैं पर संगीत की उनकी समझ क्या है ? दस हज़ार में से दस-बीस आदमी ऐसे होंगे जिन्हें संगीत की समझ होगी और ऐसे लोगों की गहराई अलग होगी।
तो आपकी नजऱ में महानतम गायिका कौन है?
सुब्बालक्ष्मी है। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो कला जानता हो, यही कहेगा। केएल सहगल भी कोई महान गायक नहीं थे पर लोकप्रिय थे। आप जसराज को लें, बड़े ग़ुलाम अली को लें वो क्या सहगल का मुक़ाबला कर सकते हैं, कभी नहीं कर सकते।
अच्छा भारत कब आ रहे हैं. काफ़ी समय हो गया आपको भारत आए।
भारत आना आजकल ऐसा है कि दुनिया बहुत छोटी हो गई है। जब भी मौका होगा हम आ जाएँगे। हम तो एक टाँग पर खड़े हुए हैं।
बेहतरीन प्रवीण...ये साक्षात्कार तुमने लिया...और कब लिया इसे भी मेंशन जरूर करें।...सवाल अच्छे रहे और उनके जवाब भी लाजवाब। बढ़िया प्रयास
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