शौचालय नहीं तो चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं ? पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?

जिसके घर में शौचालय नहीं होगा, वह चुनाव नहीं लड़ सकता। मतलब अब शौचालय न होने  पर नागरिकता का एक अधिकार छिन जाएगा।

क्या किसी को शौक लगती है अपने बहू-बेटियों को खुले में शौच भेजने की या महिलाएं हवा खाने खेतों में जाती हैं ?

इन्हें पता नहीं कि जिनको जिंदगी में कभी छप्पर छोड़ छत नसीब नहीं होती, फसलें खराब होने पर आत्महत्या करनी पड़ती है वह कैसे शौचालय बनवाएगा ?


उसकी पूरी जिंदगी निकल जाएगी शौचालय बनवाने के लिए एक एक रूपए जोडऩे में। आधा-अधूरा जो शौचालय बनवाने के लिए देती है, दस-बीस हजार उसमें कौन सा शौचालय बनता है ? कभी देश-प्रदेश की राजधानियों में बैठे नीति नियंता लोगों ने इसके बारे में भी सोचा है  ?


दूसरी बात अब शौचालय होना ही जनसमर्थन की पहली पहचान होगी?


इसके पहले अलग-अलग राज्यों में ग्राम पंचायत चुनाव में न्युनतम शैक्षिक योग्यता लागू की गई।

लागू करने वालों से बस एक ही सवाल है, क्या भारत में शत-प्रतिशत साक्षरता दर हो गई है ? जो यह लागू किया जा रहा।


कौन मां-बाप चाहेगा कि उसकी संतान अंगूठा टेक हो। हर कोई आगे बढऩा चाहता है, एक तुम्हीं नहीं हो सरकार, जिसके सपने हैं। अब आप सब संसद में बैठने के ख्वाब पालते हैं तो गांव का गंगू तो प्रधान बनने का स्वप्र देख ही सकता है। भले ही वह कभी स्कूल नहीं गया हो पर इतना तो भली भांति जानता ही है कि गांव की जरूरत क्या है।


जिस तरह से यह नया नया फंडा लागू किया जा रहा क्या यह नागरिक अधिकारों को सीमित करने का एक प्रयास नहीं है? अगर नहीं है तो क्यों नहीं है?


जब देश का प्रधानमंत्री हाईस्कूल पास हो सकता है तो गांव का प्रधान अनपढ़ क्यों नहीं। क्या देश चलाना गांव की अपेक्षा ज्यादा आसान होता है।

पार्टरनर तुमने सबसे पहले पंचायत स्तर पर न्युनतम शैक्षिक योग्यता लागू करना शुरू की, अब शौचालय आ गया | तुम हमारे नागरिक अधिकारों का बड़े प्यार से गला घोंट रहे ... तुम एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ते हो, एक हम हैं कि घर से दूर होने के कारण 25 साल के हो गए और आज तक वोट ही नहीं डाल पाए | तुमने आज तक हमें न तो दो जगह वोट डालने का अधिकार दिया और न ही पोस्ट या अॉनलाईन माधयम से | यहां तक कि तुमने हमें राईट टू रिजेक्ट का भी पूरा अधिकार नहीं दिया| थोड़ा अधिक शोर मचाने पर लॉलीपाप जैसा आधा अधूरा पकड़ा दिया, जिससे कि तुम्हारी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता | 
 और तो और छीने जा रहे एक एक अधिकार.... तुम जानते हो बहुत अच्छे से पार्टनर कि हम सब भगोने में रखे मेढ़क जैसे हैं, एक एक छीनोगे तो थोड़ी उछलकूद के बाद सब शांत हो जाएंगे...हो भी जाते हैं | दो चार लोग कूं कां करते हैं बस |  

  अगला किस चीज का नंबर है चलते चलते यह भी बताते जाओ पार्टनर । कहीं वोटिंग के अधिकार या एक ही व्यक्ति  प्रत्याशी को वो वोट देने की बाध्यता तो नहीं होने वाली है? क्यों पार्टनर। .. ! 


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