माफ करना दोस्त हम सब तुम्हारे गुनहगार हैं

कल शाम को जब से यह पता चला कि, हैदराबाद विश्वविद्यालय से निष्काषन झेल रहे पांच दलित छात्रों में से रोहित वेमुला ने दुनिया छोड़ने का फैसला कर लिया तब से मन उदास है | समझ नहीं आ रहा इसपर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करूं | चीखूं, चिल्लाऊं या कुछ  और करूं... इस कदम के लिए रोहित को कायर कहूं या बहादुर |

 मेरी नजर में आत्महत्या करना हमेशा से एक कायराना कृत्य रहा है, लेकिन रोहित को न तो कायर कहते बन रहा और न ही विद्रोही |

दोस्त रोहित तुम कायर तो नहीं थे क्योंकि तुमने अधिकारों के लिए शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की | विद्रोही इसलिए नहीं कह सकता क्योंकि तुम सब शांति से हास्टल खाली कर सड़क पर आ खुले आसमान के नीचे आ गए |

सच तो यह है कि तुम जैसे लोग फूल जैसे होते हैं, जो तोड़ने वाले के हाथ में भी नहीं चुभते | बस हर जगह अपनी खुशबू बिखेर रहे होते हैं |

दोस्त रोहित तुम जैसे लोगों को यह सिस्टम और ब्राह्मणवादी समाज नही न तो समझता है और न ही इसकी कोशिश करता है|

तुम्हें समझना इस देश के शिक्षण संस्थानों के बस की बात नहीं दोस्त | सबकी आंखों पर वर्गभेद का पर्दा पड़ा | उन्हें तुम्हारे सपने दिखाई नहीं पड़ते|

तुम तो सितारों की सैर करना चाहते थे, पर विश्वविद्यालयों में बैठे कथित विद्वान कुलपति और प्रोफेसर्स यह रिस्क नहीं उठा सकते थे|

तुम्हें पता तो होगा ही कि वे शिक्षक होने के पहले अपने आपको ब्राह्मणवाद का बड़ा गुरुघंटाल समझते होंगे | कई तो ऐसे होंगे जो पढ़ाने अधिक जातिवादी संगठनों में मिली जिम्मेदारी निभाते होंगे|

कई तो ऐसे होंगे जिन्हें इसी के दम पर नौकरी मिली होगी |
उन्हें डर था कि कहीं रोहित जैसे लोगों के कारण उनके विद्वता का छद्म आवरण हट न जाए | इसलिए सबने मिलकर तुम्हें सितारों में गुम कर दिया |

पर दोस्त ऐसा नहीं होगा, अब बिना किसी रोक-टोक के चमकते रहना तारों के बीच| जब जब अमावस्या होगी और जोर से चमकना, जिससे घने अंधेरे में भी एक रोशनी की किरण फूटे, बादलों को चीर कर चमकना|

यह भी एक सच है दोस्त कि हम सब भी तुम्हारे जैसे लोगों को रखना नहीं जानते | अगर जानते होते को तुम हमें अलविदा न कहते| हम सब एक दूसरे से कभी नहीं मिले तो क्या हुआ, शायद मिलते भी नहीं पर हम सब के सपने तो एक जैसे हैं |

 पर नहीं हम सब जाहिल हो चुके हैं | हमारी नसों का खून ठंडा पड़ चुका है| ऐसे ही एक-एक को बीच सफर में साथ छोड़ते एक दूसरे के सपनों का दम घुटते देखते रहेंगे| फिर सोशल मीडिया पर शोक संवेदना प्रकट करते रहेंगे| बस सारी क्रांति बटन तक समा कर रह गई है| 

ऐसा न होता तो क्या UGG के लिए लड़ रहे अपने ही दोस्तों को लाठी खाते देखते | वहां भी हमारे सपनों का ही कत्ल हो रहा | शायद हम सबको किसी अगली चिट्ठी का इंतजार है | 
माफ करना दोस्त ! हम सब तुम्हारे गुनहगार हैं |

टिप्पणियाँ

  1. याकूब मेमन की फांसी का विरोध करने वाला हर व्यक्ति देशद्रोही है। देशद्रोही हर देशवासी का दुश्मन है। देशद्रोहियों के लिए संवेदना प्रकट करना हमारे बस की बात नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  2. pavan kumar ji virodh capital punishment ka ho raha tha aur hoga na ki yakub ya kisi bhi terrorist ka

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक नदी की सांस्कृतिक यात्रा और जीवन दर्शन का अमृत है 'सौंदर्य की नदी नर्मदा'

गड़रिये का जीवन : सरदार पूर्ण सिंह

तलवार का सिद्धांत (Doctrine of sword )

युद्धरत और धार्मिक जकड़े समाज में महिला की स्थित समझने का क्रैश कोर्स है ‘पेशेंस ऑफ स्टोन’

माचिस की तीलियां सिर्फ आग ही नहीं लगाती...

स्त्री का अपरिवर्तनशील चेहरा हुसैन की 'गज गामिनी'

ईको रूम है सोशल मीडिया, खत्म कर रहा लोकतांत्रिक सोच

महत्वाकांक्षाओं की तड़प और उसकी काव्यात्मक यात्रा

महात्मा गांधी का नेहरू को 1945 में लिखा गया पत्र और उसका जवाब

चाय की केतली