मेरे ख्वाब‬

ख्वाब हैं मेरे फाहे जैसे

उन्हें संजोने की जुगत

करता हूं मैं कैसे कैसे
जब होता हूं सफर में
उन्हें जेब में रख लेता हूं
सोता हूं तो हौले से
सिरहाने तकिए के नीचे
रखकर ही झपकी लेता हूं
जब मैं सोने की कोशिश करता हूं
सारे सपने जग जाते हैं
कोई टांग खींचता
कोई चद्दर
सब एक साथ चीखते
नहीं है कोई मुकद्दर
चल उठ जा बेटे
बन जा तू अब सिकंदर
ख्वाब हैं मेरे फाहे जैसे
कहीं बिखर ना जाएं
डरता हूं अंदर अंदर

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