केजरी-मोदी विवाद: हम तुमसे दो नहीं चार कदम आगे

दिल्ली सचिवालय पर अचानक छापे के बाद अरविंद केजरीवाल का संयम खोना भले ही खराब लगे और उनकी भाषा के गिरे स्तर को उनकी घटिया राजनीति कह कर प्रचारित किया जाए पर इसमें कोई संदेह नजर नहीं आता कि सीबीआई ने छापा पीएमओ के ही इशारे पर ही मारा। इस मामले में उसकी नियति पर भी शक करने के कई बुनियादी प्रमाण हैं। 

सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है और समय समय पर उसका इस्तेमाल केन्द्र सरकारों द्वारा होता रहा है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसको पिंजड़े का तोता कोई और नहीं माननीय उच्चतम न्यायालय कह चुका है । उसने इसे एक स्वायत्त संस्था बनाने की भी पैरवी किया था।

बीजेपी जब विपक्ष की भूमिका में थी तो यह हमेशा कांग्रेस पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाती रहती थी, लेकिन जब खुद सत्ता में आई तो उसी सीबीआई को पाक साफ बताने लगी।

सीबीआई के थ्योरी में कितने छेद हैं यह इसी बात से पता चलता है  कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस समेत सभी दलों ने कितनी बार व्यापमं महाघोटाले की सीबीआई जांच की मांग की, एक के बाद एक कितनी मौतें हुईं लेकिन अभी तक सीबीआई के हाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दफ्तर तक नहीं पहुंच सकी। जबकि यह सब जानते हैं कि डीमैट और व्यापमं के तार किससे जुड़े हैं। इसमें कई बार मुख्यमंत्री शिवराज का भी नाम उछल चुका है।

मध्यप्रदेश को एक बार किनारे कर दिया जाए तो सीबीआई ने अभी तक जांच की इतनी तत्परता महाराष्ट्र और राजस्थान में नहीं दिखाई। राजस्थान का ललित मोदी प्रकरण चल ही रहा है, जिसमें आज ही राजस्थान पत्रिका अखबार की सुर्खी है कि  दबाव में आकर ललित मोदी को फिर से नियुक्त किया गया। जांच तो छोडि़ए केन्द्र सरकार ने राजस्थान सरकार से इस संबंध में अभी तक सवाल पूछना गवारा नहीं समझा। और तो और कांग्रेस जब सत्ता में थी तो बीजेपी हमेशा आरोप लगाती थी कि समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर कांग्रेस केन्द्र में सरकार चलाने के लिए सीबीआई जांच नहीं करवा रही है।

वर्ष 2013 में कई सालों के उठापटक के बाद आखिरकार सीबीआई को मुलायम सिंह के विरुद्ध साक्ष्य ही कम पड़ गए और फिर उसने आय से अधिक संपत्ति के मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी।

ऐसा नहीं है कि एक बार क्लोजर रिपोर्ट लगाने के बाद वह दोबारा नहीं खुलती। अगर बीजेपी की नियति साफ है तो फिर से मुलायम सिंह के खिलाफ जांच शुरु करनी चाहिए। नहीं तो उसके किए गए कार्य सवालों के घेरे में आते रहेंगे।

अब सीबीआई का इस तरह का प्रयोग चाहे केजरीवाल को नीचा दिखाना हो या जेटली को बचाना या फिर सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ लडऩा ही पर वह है शक के दायरे में। जेटली पर तो बीजेपी नेता कीर्ति आजाद पहले भी सीधे-सीधे आरोप लगा चुके हैं। मगर यह संकेत है राजनीति और गवर्नेंस के गिरते स्तर का। यह काम करके बीजेपी ने भी साबित कर दिया कि वह भी अपनी पूर्वर्ती कांग्रेस से बिल्कुल अलग नहीं है, बल्कि एक कदम आगे जाती हुई दिख रही है।

रही बात केजरीवाल की तो कल जिस तरह से उन्होने अपने भाषा और संयम का स्तर खोया उससे एक बात तय हो गई कि कीचड़ में लिपटी हुई आधुनिक भारतीय राजनीति में उन्हाने अपना यज्ञोपवीत करा लिया। कितना भी वे अपने को आम आदमी कह कर बचाव करें लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता वे अब आंदोलनकारी नहीं बल्कि एक मुख्यमंत्री बन चुके हैं।  उन्हें पद की गरिमा को ध्यान में रखकर मुंह खोलना चाहिए। 





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