शीर्षक मुक्त कविता (2)
सिन्दूर बन सिर पर सवार होना बन्धनों में जकड़ना चूड़ियां पहना हाथों की लय पर लगाम लगाना नहीं चाहता मैं | पांव की बेड़ियाँ बन तुम्हारी उड़ान रोकना गर्दन मंगल सूत्र के बोझ से दबाना परिवार के खूंटे से बांधना और तुम्हारी तमन्नाओं को वचनों के बर्फ से भी ठंड करना नहीं चाहता मैं | बस आँखों से बोकर एक विश्वास चुपचाप दाखिल हो जाना चाहता हूं तुम्हारी दुनिया में जैसे नीद और स्वप्न दाखिल हो जाता है आँखों में, तुम्हें बंधन मुक्त रख तुमसे प्यार करना चाहता हूं बस |