सत्ता मद आ घेरे तो सब किये-कराये पर झाडू फिरे
कहते हैं न किश्मत और लोकतंत्र में जनता, सबको दो बार मौके देती है, भुना सको तो भुना लो | आम आदमी पार्टी को मौके किश्मत ने नहीं जनता ने दिया, जिसके कारण तीन साल पुरानी पार्टी और पिछले बरस 49 दिनों के सत्ता के अनुभव को लेकर एक बार फिर से इसने सत्ता में अपने 49 दिनों को पूरा कर लिया | जब विगत साल जब केजरीवाल ने सत्ता को ठोकर मारी थी तो राजनीतिक गलियारों से लेकर टी.वी. चैनलों के चकल्लस भरे डिबेटों में आम आदमी पार्टी का मजाक उड़ाया गया | किसी ने कहा झाड़ू 49 दिन ही चलता है तो किसी ने केजरी को भगोड़ा कहकर उपहास उड़ाया, लेकिन दिल्ली विधान सभा के नतीजों ने सबकी सिट्टी पिट्टी गुम कर दी |
अगर पिछले 49 दिनों और अब के 49 दिनों की तूलना करें तो पार्टी से लेकर केजरीवाल और फिर जन आकांक्षाओं तक में बहुत फर्क आ गया है | जहां पिछली बार "आप" के पास अल्पमत में होने का बहाना था वहीं अब तो प्रचंड बहुमत है | पिछले बार की अपेक्षा यह 49 दिन व्यवस्थित रहा, इस बार केजरीवाल ने बात बात पर धरने पर बैठने और मेट्रो में यात्रा करने या बड़े बंगले न लेने जैसे दिखावटीपन से दूर रहे | इसके कारण उन्होने प्रशासन पर समुचित ध्यान दिया और केन्द्र से टकराव की आशंकायें भी निर्मूल साबित हुईं | इस बार केजरीवाल एक सफल प्रबंधक की तरह, असंभव से लगने वाले वादों को एक के बाद एक पूरा कर रहे, कहीं कोई हड़बड़ी नहीं | हर कदम फूंक-फूक कर रख रहे|
इस 49 दिन का दूसरा पहलू यह है कि जहां पिछली बार जहां आम आदमी पार्टी एकजुट थी कुछ छिट पुट मतभेदों को छोड़ दिया जाय तो | लेकिन इस बार पार्टी का अंर्तकलह बिल्कुल सतह पर आ गया | अब तक केजरीवाल पार्टी में और बाहर भी हर फैसला लोक विमर्श से लेने वाले माने जाते थे वहीं इस बार उनका एक दूसरा ही चेहरा तानाशाही वाला सामने आया | उन्होने पार्टी में हर उस व्यक्ति को किनारे लगाया जो उनके खिलाफ आवाज आवाज उठाया सबसे पहले प्रशांत भूषण फिर योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द और यहां तक कि पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास को भी | एक टेप में केजरीवाल अपशब्दों का प्रयोग करते दिखे | इस तरह के कृत्यों ने आम आदमी पार्टी की जमकर भद्द पिटवाई |
कुल मिलाकर इन 49 दिनों में केजरीवाल प्रशासनिक और राजनीतिक मोर्चे पर मझे हुए खिलाड़ी की तरह नजर आये तो पार्टी में तानाशाही प्रवृत्ति नें उनके लोकप्रियता में गिरावट लाई |
शपथ लेने वाले दिन अहंकार न करने की नसीहत देने वाले केजरी खुद सत्ता के मद में इस कदर चूर हो गये कि भाषा की गरिमा और अपने ही सिद्धांतों को भूल गए | अगर यह मद बरकरार रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आम आदमी पार्टी टूटे सीक के झाडू की तरह बिखर जायेगी और जन आकांक्षाओं पर भी झाड़ू चलेगा |
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