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एकांत की तलाश में एक दिन

मै  भटकता हुआ एकांत की तलाश में, रोज ढ़ूढकर अंधेरा मै जा बैठता पास के पार्क में,   शायद एकांत मिल जाय इस प्रयास में | लेकिन इस हर बार मैं खुद से बात करने लगता, बैठे बैठे पार्क की बेंचों पर ही दुनियावी समस्याओं में उलझनें लगता |   एक दिन मेरे दिमाग मे ख्याल पनपा कहीं मै दार्शनिक बनने की राह पर तो नहीं ,  इस ख्याल के आते ही मेरी तंद्रा टूटी, मैं चौंक उठा और कहा नहीं नहीं मैं पागल नहीं हो रहा  इस सच्चाइ को परखने के लिए मै गला फाड़ के चिल्लाया और सिर को कई बार इधर उधर हिलाया |  तब तक एक बच्चे नें अपने पिता जी से पूछा वह आदमी क्यों चिल्लाया,  प्रश्न से पहले ही उत्तर आया, चलो भाग चलो यह आदमीं है पगलाया | इन लफ्जों के कान से टकराते ही मेरा होश ठिकाने आया  मैने कहा अब निकल लो बेटा अभी तो सिर्फ पागल कहलाये, थोड़ी देर बाद कहीं बच्चे ईंट पत्थर भी न बजायें | यही सोचता, हांफता डांफता घर आ गया, एकांत अंधेरे में नहीं खुद के भीतर होने का अहसास जाग गया  लेकिन अब भी पार्क के नाम पर कांपता है मन, कहीं  बच्चे पागल समझ शुरू ना हो जायें दनादन ||

तुष्टीकरण छोड़ आधुनिकीकरण के ट्रैक पर दौड़ी प्रभु की रेल

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मोदी सरकार के पहले रेल बजट को लेकर जारी कयासों का दौर समाप्त हो गया | रेल मंत्री सुरेश प्रभु नें अब तक चले आ रहे लालीपॉप बांटने की परम्परा पर ब्रेक लगाते हुए  रेलवे को आधुनिकीकरण के ट्रैक पर दौड़ाने की घोषणा किया | किसी भी बजट में न तो सब कुछ अच्छा हो सकता है और न ही सब कुछ बुरा । बजट पेश करते समय  मंत्री को संतुलन बनाना पड़ता है । कई सीमाओं के बावजूद यह रेल  बजट अधिक यथार्थवादी रहा । बहुत दिनों से रेलवे को ऐसे बजट का इंतज़ार था जिसमें रेलवे की वास्तविक हालत सुधारने का माद्दा हो । रेल मंत्री ने इस वस्तु स्थिति को महसूस किया और रेलवे में निवेश तथा उसकी क्षमता विस्तार पर ध्यान दिया ।  भारतीय रेलवे के इतिहास में यह पहला मौका था जब बजट में कोई नई ट्रेन चलाने की घोषणा  नहीं किया गया | इस बात की जरूरत बहुत दिनों से महसूस की जा रही थी कि नई ट्रेनों की घोषणा के पहले  समीक्षा की जाय कि क्या ट्रैकों पर जगह खाली है | रेलवे के अनुसार वर्तमान रेल पटरियों पर 100%  अतिरिक्त भार है | इसी कारण ट्रेनें लेट चलती हैं और रेल हादसों का भी यह एक प्रमुख कारण है | रेल बजट में आम तथा खास सबका ध्यान रखा

ताकि बची रहे खेती और जिंदा रहें किसान

जिस देश की 80 फीसदी आबादी गांवों में रहती हो और जहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर हो, वहां आम सहमति और किसानों के हितों का ध्यान रखे बिना कोई भी कानून कैसे बनाया जा सकता है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के लिए जो विधेयक तैयार किया, उसका देशव्यापी विरोध हो रहा है. देश के तमाम किसान संगठनों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और विपक्षी राजनीतिक दल भी इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं. चाहे मोदी सरकार और उसके मंत्री लाख सफाई दें, विरोधियों के पास तमाम अकाट्य दलीलें हैं. इस विधेयक के पारित हो जाने पर देश की अर्थव्यवस्था का आधार रही खेती-किसानी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा. विधेयक की विसंगतियां एनडीए सरकार की ओर से संसद में पेश विधेयक के कानून में बदल जाने के बाद पांच क्षेत्रों में लगने वाली परियोजनाओं के लिए जमीन के अधिग्रहण की खातिर 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी नहीं रह जाएगी. खेत का मालिक चाहे या ना चाहे, इन परियोजनाओं के नाम पर सरकार अब खेती की बहुफसली जमीन का भी अधिग्रहण कर सकती है. जमीन के मालिक ने अगर मुआवजा लेने

गम से है खुशियों की खनक

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जिंदगी भी अजब पहेली है, कभी हम गमों के समंदर में गोते लगाते हैं तो आने वाले कुछ पलों बाद ही हमारी जिंदगी मे खुशियों की बहारें नजर आती हैं, कभी-कभी तो लगता है कि गम इंतजार कर रहा है, कब खुशी जाये और वह वापस आये खुशियां तो मेहमान की तरह होती हैं वे पल दो पल के लिए आती हैं, हम खुशियों का स्वागत भी मेहमान की ही तरह करते हैं | लेकिन गम तो एकदम लगोटिया यार की तरह होता है, अरे कहावत है ना "घर की मुर्गी साग बराबर" इस पर एकदम फिट बैठती है | अब बेचारा गम जिंदगी जीने में इतना बड़ा रोल प्ले करता है, और हम हैं कि इसकी इज्जत ही नहीं करते| जरा सोचिये कि अगर गम न हो तो क्या हम सब खुशियां कब आईं और कब चली गईं, जान पायेंगे, शायद नहीं, क्योंकि हम खुशियों की कीमत ही नहीं समझेंगे | जिंदगी का एक फलसफा है कि जो चीज जितनी जद्दोजहद से मिलती है वह उतनी ही बेशकीमती होती है | इसी पर एक  शेर और बात खत्म... गम और खुशियों का यराना है, जब तक गम है तभी तक खुशियों का तराना है गम तो है ता उम्र के लिए खुशियां तो पल दो पल का   फसाना हैं यायावर प्रवीण