बसंत पंचमी और मन की टीस...

बसंत का आया मधुमास,
कण- कण में छाया मादक रस
पेड़ों पर छाइ हरियाली,
बौराई आमों की डाली,
फूलों से नव किसलय फूटी,
छाई मनमोहक छटा अनूठी
वाग्देवी की चहुं ओर पूजा होती,
बस एक बात हरदम कचोटती ,
रह- रह कर दिल में एक टीस उभरती,
नन्हे हाथों में जब कबाड़ की झोली दिखती
मन वेदना से भर जाता, बचपन के बसन्त की हरियाली जब कालिख में लिपटी ठूंठा होते दिखती
मुझको हर शज़र ठूंठा, हर बसंत हरियाली फीकी दिखती है
जब तक इस त्रासदी की आग नही बुझती है,
 विद्या देवी की पूजा मजाक सी लगती है, जब तक हर हाथों में कलम औ किताब नहीं दिखती है |
यह यायावर भी बसंत पंचमी धूम धाम से मनायेगा
श्वेत वसना को फूल माला चढ़ायेगा
जब हर दिल में दीप शिक्षा   का प्रज्वलित हो जायेगा

(यायावर प्रवीण )

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